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Wednesday, 5 September 2012

चन्द्रगुप्त देने को आतुर अपना अंग-प्रत्यंग -

 एकलव्य ने दिया अंगूठा, खुद से हुआ अपंग ।
द्रोण सरीखे गुरू हमेशा हैं सत्ता के संग ।
 
गिरगिटान सा रहे बदलते, शासक हरदम रंग ।
गाँव-राँव  की विकट परिस्थिति, शिक्षक चिन्तक दंग ।
 
लैप-टॉप की टॉफी से कर रहे तपस्या भंग ।
अधकचरी यह चुकी व्यवस्था, करते शोषक तंग ।
 
 घूम रही आधी आबादी, अब भी नंग धडंग ।
मानवता को लड़नी होगी फिर से तगड़ी जंग ।।
 
चन्द्रगुप्त देने को आतुर अपना अंग-प्रत्यंग ।
चाह एक चाणक्य बना ले, मुख्य धार का अंग ।

6 comments:

  1. पौराणिक पात्र कई-कई अर्थ देते हैं. तथापि आज कोई एकलव्य या चंद्रगुप्त उतना भोला नहीं रहा. बढ़िया दोहे.

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  2. घूम रही आधी आबादी, अब भी नंग धडंग ।
    मानवता को लड़नी होगी फिर से तगड़ी जंग ।।

    चन्द्रगुप्त देने को आतुर अपना अंग-प्रत्यंग ।
    चाह एक चाणक्य बना ले, मुख्य धार का अंग ।
    प्रखर आवाहन बदलाव का ,चिरकुटी रिमोटिया व्यवस्था को बदलने का ....बेहतरीन ललकार ....
    नारी शक्ति :भर लो झोली सम्पूरण से
    नारी शक्ति :भर लो झोली सम्पूरण से

    आधी दुनिया के लिए सम्पूरण -पूरी तरह स्वस्थ रहे आधी दुनिया इसके लिए ज़रूरी है देहयष्टि की बस थोड़ी ज्यादा निगरानी ,रखरखाव की ओर थोड़ा सा ध्यान और .बस पुष्टिकर तत्वों को नजर अंदाज़ न करें .सुखी स्वस्थ परिवार के लिए इन खुराकी सम्पूरकों पर थोड़ा गौर कर लें:


    रविकर फैजाबादी
    चुस्त धुरी परिवार की, पर सब कुछ मत वार |
    देहयष्टि का ध्यान कर, सेहत घर-संसार |
    सेहत घर-संसार, स्वस्थ जब खुद न होगी |
    सन्तति पति घरबार, भला हों कहाँ निरोगी ?
    संरचना मजबूत, हाजमा ठीक राखिये |
    सक्रिय रहे दिमाग, पदारथ सकल चाखिये ||

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  3. आज 07/09/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. बहुत बढ़िया.....

    सादर
    अनु

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