(1)
आदरणीय अम्बरीश जी और अरुण निगम जी की युगलबंदी पर
( प्रशंसा करने का यह तरीका : कहीं गलत तो नहीं )
दारुण दोहा दत्तवर, दिया दाद दिल-दाध ।
अरुण अशठ अमरीश अध , अवली असल अबाध ।
अवली असल अबाध, पुन: रोला जुड़ जाते ।
चढ़ा करेला नीम, देख रविकर घबराते ।
युगलबंद हो बंद, सुनो स्वर रविकर कारुण ।
हे आयोजक वृन्द, घटाओ लेबल दारुण ।।
भावार्थ : जैसा मैंने सोचा
दारुण दोहा दत्तवर, दिया दाद दिल-दाध ।
हे ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त, प्रचण्ड दोहे पर मैं दाद देता हूँ, और दिल में ईर्ष्या भी रखता हूँ ।
(दोहा के रचनाकार अम्बरीश जी)
अरुण अशठ अमरीश अध , अवली असल अबाध ।
(कृपया अध को अघ न पढ़ें)
सज्जन अरुण और अमरीश ने आधी आधी (अध) पंक्ति (अवली )
सज्जन अरुण और अमरीश ने आधी आधी (अध) पंक्ति (अवली )
जो उन्मुक्त ओर वास्तविक हैं (रची हैं )
पहली पंक्ति में अम्बरीश जी के लिए विशेषण दत्तवर प्रयुक्त हो चुका है ,
इसलिए दुबारा जरुरत नहीं है
अवली असल अबाध, पुन: रोला जुड़ जाते ।
पहले, दोहे आदरणीय अम्बरीश जी ने रचे फिर उनपर रोले लिखे गए
चढ़ा करेला नीम, देख रविकर घबराते ।
अरुण निगम जी मेरे परम मित्र हैं-
उनसे पहले ही चर्चा हो चुकी थी इन रोले छंद की ।
उनका अनुरोध था की कुछ टिपण्णी की जाए ।।
दोहरी सुन्दरता देखकर रविकर घबरा रहा है ।
(क्योंकि वह इतनी सुन्दर रचना करने में सक्षम नहीं है- ईर्ष्या के वशीभूत कहा जा रहा है )
रविकर ईर्ष्या वश यह युगलबंदी बंद करने के लिए आयोजक गण से गुहार लगाता है-
युगलबंद हो बंद, सुनो स्वर रविकर कारुण ।
हे आयोजक वृन्द, घटाओ लेबल दारुण ।।
इतनी श्रेष्ठ रचना और युगल बंदी देख कर रविकर ईर्ष्या वश यह युगलबंदी बंद करने के लिए आयोजक गण से गुहार लगाता है-
(2)
मेरे सपनों के भारत में, दुश्मन सेंध लगाते देखा ।
अपनी मिटटी का बन्दा ही, मिटटी वहां हटाते देखा ।
चोरी की जो रपट लिखाई, सज्जन को रपटाते देखा ।
गलबहियां दुर्जन के संग में, अपनों को हकलाते देखा ।।
(3)
मेरे मुल्क महान में, मार मजा मक्कार ।
समाधान सपना सजा, सूत्र सजा सरकार ।
सूत्र सजा सरकार, संज्ञ सत्ता संक्रामक ।
संतर्जन संघर्ष, संधिचौरक संभ्रामक ।
रविकर का सद-स्वप्न, दु :शासन मिटे घनेरे ।
भारत बने महान, देशवासी खुश मेरे।
(4)
पहले पहले प्यार पर, प्रतिकामिनि प्रतिहार ।
(6)
हर दम दम भर दंगे देखे ।
अरबों भूखे नंगे देखे ।
बेईमान चालाक चोर ठग
खुशहाली में चंगे देखे ।।
देश भक्त को ठंडा पाया ।
सज्जन को पाया घबराया ।
दुर्जन चैन छीनता देखा -
जिस पर है सत्ता का साया ।
(7)
(4)
पहले पहले प्यार पर, प्रतिकामिनि प्रतिहार ।
प्रत्यर्चन पर पैंतरे, पैना पृष्ठ प्रहार ।
पैना पृष्ठ प्रहार, परोसी परसु परोसे ।
भग्गुल भक भकुवान, भागता भाग्य भरोसे ।
टूटा फूटा स्वप्न, कुण्डली रविकर कहले ।
रहिये युवा सचेत, प्यार मत करना पहले ।।
(5)
फटेहाल कटु कोयला, कितने काले केस ।
नहलाओ बेसन मलो, बोलो नहीं विशेष ।।
रेवड़ियाँ सब लूटते, माँ की क्या परवाह ।
गोरी के वे पूत सब, करे सौतिया डाह ।।
सर्फ़ यूरिया दूध में, बढे मिलावट खोर ।
खुशबु क्या भकरांध है, मार रहे मुँह ढोर ।।
कृषक आत्म-हन्ता हुवे, छोडो उनका ख्याल ।
सोलह दिन से रहे जल, एम पी का क्या हाल ।।
स्वर सुनना सबसे कठिन, संसद सत्ता मौन ।
भैंस बजाये बीन तो, हो बिटिया का गौन ।।
रोम रोम इ-टिली लिली , रोम पोप का लैंड ।
खड़ी खाट कर के चले, स्वप्न भूल हा-लैंड ।।(6)
हर दम दम भर दंगे देखे ।
अरबों भूखे नंगे देखे ।
बेईमान चालाक चोर ठग
खुशहाली में चंगे देखे ।।
देश भक्त को ठंडा पाया ।
सज्जन को पाया घबराया ।
दुर्जन चैन छीनता देखा -
जिस पर है सत्ता का साया ।
(7)
बन्दों पर होगी पाबन्दी, पा बन्दी चंडी बिंदास |
सजा-याफ्ता सा घर साजूँ, बीबी की सुन सुन बकवास |
तफरी-तबियत तुनुक-मिजाजी, तनातनी उडती उपहास |
बकवाये बेमतलब में नित, डाले न थोड़ी भी घास ||
(8)
इतनी धाकड़ हो चुकी, जब भैया शुरुवात |
कैसे खुरपेंची करें, अपनी क्या औकात ?
अपनी क्या औकात, उमा अविनाशी बागी |
जब अशोक संदीप, प्रभाकर जी अनुरागी |
रविकर दुनिया नित्य, इसे आदर से देखे |
भारत मेरा स्वप्न, चले जग इसके लेखे ||
(9)
शामिल पहली मर्तबा, पाया मजा विशेष ।
आयोजक आभार है, शुभकामना अशेष ।
शुभकामना अशेष, तुरन्ती कई लिखाई ।
बना श्रेष्ठ माहौल, तबीयत फिर मचलाई ।
घर के झंझट भूल, ताकता कवि गण काबिल ।
रविकर का सौभाग्य, मस्त तन्मय वह शामिल ।।
यह भी
वाह ,,,,रविकर जी आपकी बेहतरीन कुण्डलियाँ हर जगह अपना जलवा
ReplyDeleteबिखेर रही है,,,,,बधाई,,,,
waah bahut khoob ...
ReplyDeleteAASU KAVI HAIN RAVIKAR JI. KISI BHI VISHAY PAR KUNDALI RACH DENA INKI KHASIYAT. VIDHA PAR JABARDAST PAKAD HAI.
ReplyDeleteरविकार जी की टिप्पणी, होती लच्छेदार।
ReplyDeleteलच्छेदार जलेबियाँ, होती हैं रसदार।।