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Sunday, 9 September 2012

O B O : मेरे सपनों का भारत - रविकर की टिप्पणियां


(1)
आदरणीय अम्बरीश जी और अरुण निगम जी की युगलबंदी पर 
( प्रशंसा करने का यह तरीका : कहीं गलत तो नहीं )

 दारुण दोहा दत्तवर, दिया दाद  दिल-दाध  ।
अरुण अशठ अमरीश अध , अवली असल अबाध ।
अवली असल अबाध, पुन: रोला जुड़ जाते ।
चढ़ा करेला नीम, देख रविकर घबराते ।
युगलबंद हो बंद, सुनो स्वर रविकर कारुण ।
हे आयोजक वृन्द, घटाओ लेबल दारुण ।। 
भावार्थ : जैसा मैंने सोचा 
 दारुण दोहा दत्तवर, दिया दाद  दिल-दाध  ।
हे ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त,  प्रचण्ड दोहे पर मैं दाद देता हूँ, और दिल में ईर्ष्या भी रखता हूँ ।
 (दोहा के रचनाकार अम्बरीश जी) 
अरुण अशठ अमरीश अध , अवली असल अबाध ।
(कृपया अध को अघ न पढ़ें)
सज्जन अरुण और अमरीश ने  आधी आधी (अध) पंक्ति (अवली ) 
जो उन्मुक्त ओर वास्तविक हैं (रची हैं )
पहली पंक्ति में अम्बरीश जी के लिए विशेषण दत्तवर प्रयुक्त हो चुका  है 
इसलिए दुबारा जरुरत नहीं है 
 अवली असल अबाध, पुन: रोला जुड़ जाते ।
पहले, दोहे आदरणीय अम्बरीश जी ने रचे  फिर उनपर रोले लिखे गए 
चढ़ा करेला नीम, देख रविकर घबराते ।
अरुण निगम जी मेरे परम मित्र हैं-
उनसे पहले ही चर्चा हो चुकी थी इन रोले छंद की ।
उनका अनुरोध था की कुछ टिपण्णी की जाए ।।
दोहरी सुन्दरता देखकर रविकर घबरा रहा है । 
(क्योंकि वह इतनी सुन्दर रचना करने में सक्षम नहीं है- ईर्ष्या के वशीभूत कहा  जा रहा है )
युगलबंद हो बंद, सुनो स्वर रविकर कारुण ।
हे आयोजक वृन्द, घटाओ लेबल दारुण ।। 
इतनी श्रेष्ठ रचना और युगल बंदी देख कर 
रविकर ईर्ष्या वश यह युगलबंदी बंद करने के लिए आयोजक गण से गुहार लगाता है-


(2)
मेरे सपनों के भारत में, दुश्मन सेंध लगाते  देखा ।
अपनी मिटटी का बन्दा ही,  मिटटी वहां हटाते देखा ।
चोरी की जो रपट लिखाई, सज्जन को रपटाते देखा ।
गलबहियां दुर्जन के संग में, अपनों को हकलाते देखा ।।

(3)
मेरे मुल्क महान में, मार मजा मक्कार ।
समाधान सपना सजा, सूत्र सजा सरकार ।
सूत्र सजा सरकार, संज्ञ सत्ता संक्रामक ।
संतर्जन संघर्ष, संधिचौरक संभ्रामक ।
रविकर का सद-स्वप्न, दु :शासन मिटे घनेरे ।
भारत बने महान, देशवासी खुश मेरे।

(4)

 पहले पहले प्यार पर, प्रतिकामिनि प्रतिहार ।
प्रत्यर्चन पर पैंतरे, पैना पृष्ठ प्रहार ।
पैना पृष्ठ प्रहार, परोसी परसु परोसे ।
भग्गुल भक भकुवान, भागता भाग्य भरोसे ।
टूटा फूटा स्वप्न,  कुण्डली रविकर कहले ।
रहिये युवा सचेत, प्यार मत करना पहले ।।

(5)
फटेहाल कटु कोयला, कितने काले केस ।
नहलाओ बेसन मलो, बोलो नहीं विशेष ।।
 
रेवड़ियाँ सब लूटते, माँ की क्या परवाह ।
गोरी के वे पूत सब,  करे सौतिया डाह ।।
 
सर्फ़ यूरिया दूध में, बढे मिलावट खोर ।
खुशबु क्या भकरांध है, मार रहे मुँह ढोर ।।
 
कृषक आत्म-हन्ता हुवे, छोडो उनका ख्याल ।
सोलह दिन से रहे जल, एम पी का क्या हाल ।।
 
  स्वर सुनना सबसे कठिन, संसद सत्ता मौन ।
भैंस बजाये बीन तो, हो बिटिया का गौन ।।
 
रोम रोम इ-टिली लिली , रोम पोप का लैंड ।
खड़ी खाट कर के चले, स्वप्न भूल हा-लैंड ।।

(6)
हर दम दम भर दंगे देखे ।
अरबों भूखे नंगे देखे ।
बेईमान चालाक चोर ठग
खुशहाली में चंगे देखे ।।

देश भक्त को ठंडा पाया ।
सज्जन को पाया घबराया ।
दुर्जन चैन छीनता देखा -
जिस पर है सत्ता का साया ।
 (7)
बन्दों पर होगी पाबन्दी, पा बन्दी चंडी बिंदास |
सजा-याफ्ता सा घर साजूँ, बीबी की सुन सुन बकवास |
तफरी-तबियत तुनुक-मिजाजी, तनातनी उडती उपहास |
बकवाये बेमतलब में नित, डाले न थोड़ी भी घास  ||
 (8)

इतनी धाकड़ हो चुकी, जब भैया शुरुवात |
कैसे खुरपेंची करें, अपनी क्या औकात ?
अपनी क्या औकात, उमा अविनाशी बागी |
जब अशोक संदीप, प्रभाकर जी अनुरागी |
रविकर दुनिया नित्य, इसे आदर से देखे |
भारत मेरा स्वप्न, चले जग इसके लेखे ||
(9)
शामिल पहली मर्तबा,  पाया  मजा विशेष ।
आयोजक आभार है, शुभकामना अशेष ।
शुभकामना अशेष, तुरन्ती कई लिखाई ।
बना श्रेष्ठ माहौल, तबीयत फिर मचलाई ।
घर के झंझट भूल, ताकता कवि गण काबिल ।
रविकर का सौभाग्य, मस्त तन्मय वह शामिल ।।


यह भी 

मेरे सपनों के भारत में, मोटा मोटा कोटा होगा-

4 comments:

  1. वाह ,,,,रविकर जी आपकी बेहतरीन कुण्डलियाँ हर जगह अपना जलवा
    बिखेर रही है,,,,,बधाई,,,,

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  2. AASU KAVI HAIN RAVIKAR JI. KISI BHI VISHAY PAR KUNDALI RACH DENA INKI KHASIYAT. VIDHA PAR JABARDAST PAKAD HAI.

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  3. रविकार जी की टिप्पणी, होती लच्छेदार।
    लच्छेदार जलेबियाँ, होती हैं रसदार।।

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