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Saturday, 22 September 2012

इक्यान्नबे में -

इक्यान्नबे में बाबू जी की बिगड़ी नई दुकान ।
पाँच भाइयों के चक्कर में, हुआ बड़ा नुक्सान ।

चीनी मैदा तेल कोयला, बेसन घी मजदूरी ।
नाड़ू अपनी जेब भर रहे, मोहन करते दान ।
 भट्ठी का कोयला ख़तम, दूरभाष पर बातें -
ख़तम नहीं राजा भैया की, भाभी भी हैरान ।

नौकर चाकर रहे चुराते, अपना हिस्सा खूब-
बूढी मैया मामा के घर, बन जाती मेहमान ।
आखिर डूबी नई दुकनिया, नौ सालों का धोखा 
बाबू जी को पड़ा बेचना, अपना बड़ा मकान ।।

चुकता करे लगान, विदेशी खाद उर्वरक-

 पैसा पा'के  पेड़ पर, रुपया कोल खदान ।
किन्तु उधारीकरण से, चुकता करे लगान ।
चुकता करे लगान, विदेशी खाद उर्वरक ।
जब मजदूर किसान, करेगा मेहनत भरसक ।
पर मण्डी मुहताज, उन्हीं की रहे हमेशा ।
लागत नहीं वसूल, वसूलें वो तो पैसा ।।

भैया-बहना बांधते, मोहन रक्षा-सूत्र-

दीदी-दादा तानते, कुर्सी वो मजबूत ।
भैया-बहना बांधते, मोहन रक्षा-सूत्र ।
मोहन रक्षा-सूत्र, सकल यू पी भरमाया ।
जीवन भर बंगाल,  कहीं मुंबई  कमाया ।
एफ़ डी आई, तेल, सिलिंडर काटे कौवा ।
साम्प्रदायिक संघ, हुआ हिंदू ही हौव्वा ।

6 comments:

  1. bahut khel yun hi chalte hai raajniti ki galiyaron mein ..
    bahut khoob likha aapne..

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  2. एफ़ डी आई, तेल, सिलिंडर काटे कौवा ।
    साम्प्रदायिक संघ, हुआ हिंदू ही हौव्वा
    very well said

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  3. कल 24/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  4. वाह बहुत ही सामायिक. सुंदर कटाक्ष करती खूबसूरत प्रस्तुति.

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  5. बहुत बेहतरीन रचनाएँ..
    :-)

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