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Monday 17 September 2012

कपड़ा कंघी झाड़ मत, पथ का कूड़ा झाड़-

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रविकर 

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक १८ 

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सींक-सिलाई कन्यका, सींक सिलाई बाँध ।
गठबंधन हो दंड से, कूड़ा-करकट साँध ।

जब पानी पोखर-हरा, कहाँ खरहरा शुद्ध ।
नलके से धो ले इसे, फिर होगा न रुद्ध ।

डेढ़ हाथ की तू सखी, छुई मुई सी  बेल ।
पांच हाथ का दंड यह, कैसे लेती झेल ?? 

अब्बू-हार बिसार के, दब्बू-हार बुहार ।
वे तो पड़े बुखार में, खाए मैया खार ।। 

कपड़ा कंघी झाड़ मत, पथ का कूड़ा झाड़ ।
टूटा तेरे जन्मते, कुल पर बड़ा पहाड़ ।।

 झाड़ू थामे हाथ दो, करते दो दो हाथ ।
हाथ धो चुकी पाठ से, सफा करे कुल पाथ ।
 
  सड़ा गला सा गटर जग, कन्या रहे सचेत ।
खुल न जाए खलु हटकि, खलु डाले ना  रेत ।

करते मटियामेट शठ, नीति नियंता नोच ।
जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच ।।
सींक-सिलाई =1. दुबली-पतली / झाड़ू की सींक 
पोखर = तालाब 
खरहरा = झाड़ू 
रुद्ध = रुकावट 
कपड़ा कंघी झाड़=पहनना -संवरना  
झाड़  = सफाई करना  
खलु = दुष्ट 
रेत = बालू -मिटटी से तात्पर्य 
रेत =  रेतना / काटना

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