कमतर कमकस कमिश्नर, नर-नीरज पर दाग ।
कफ़नखसोटी में लगा, लगा रहा फिर आग ।
लगा रहा फिर आग, कमीना बना कमेला ।
संभले नहीं कमान, लाज से करता खेला ।
गृहमंत्रालय ढीठ, राज्य की हालत बदतर ।
करे आंकड़े पेश, बताये दिल्ली कमतर ॥
कमकस=कामचोर
कमेला = कत्लगाह (पशुओं का )
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छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |
नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।
नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।
फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।
गोहन = साथी-संगी
गौं के यार=अपना अर्थ साधने वाला
गोही = गुप्त
नरदारा=नपुंसक
नरभूमि=भारतवर्ष
फुदकी=छोटी चिड़िया
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धाता कामी कापुरुष, रौंदे बेबस नार ।
बरबस बस पर चढ़ हवस, करे जुल्म-संहार । करे जुल्म-संहार, नहीं मिल रही सुरक्षा । गली हाट घर द्वार, सुरक्षित कितनी कक्षा । करो हिफाजत स्वयं, कुअवसर असमय आता । हुआ विधाता बाम, पुरुष जो बना बिधाता ॥ |
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दिल्ली में पर्यटन का, करना है विस्तार ।
टैग लगी लाइन मिली, लिख दिल्ली दिलदार ।
लिख दिल्ली दिलदार, छुपा इतिहास अनोखा ।
किन्तु रहो हुशियार, यहाँ पग पग पर धोखा ।
लूट क़त्ल दुष्कर्म, ठोकते मुजरिम किल्ली ।
रख ताबूत तयार, रिझाए दुनिया दिल्ली ॥
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नोट:अधिकतर कुंडलियाँ / टिप्पणियां मूल लेख के अनुसार हैं-
बीस साल का हाल है, काल बजावे गाल ।
पश्चिम का जंजाल कह, नहीं गलाओ दाल ।
नहीं गलाओ दाल, दाब जब कम हो जाये ।
काली-गोरी दाल, नहीं रविकर पक पाए ।
होवे पेट खराब, नहीं जिम्मा बवाल का ।
खुद से खुद को दाब, तजुर्बा बीस साल का ।। |
हारा कुल अस्तित्व ही, जीता छद्म विचार |
वैदेही तक देह कुल, होती रही शिकार |
होती रही शिकार, प्रपंची पुरुष विकारी | चले चाल छल दम्भ, मकड़ जाले में नारी | सहनशीलता त्याग, पढाये पुरुष पहारा | ठगे नारि को रोज, झूठ का लिए सहारा ||
हिला हिला सा हिन्द है, हिले हिले लिक्खाड़ |
भांजे महिला दिवस पर, देते भूत पछाड़ |
देते भूत पछाड़, दहाड़े भारत वंशी |
भांजे भांजी मार, चाल चलते हैं कंसी |
बड़े ढपोरी शंख, दिखाते ख़्वाब रुपहला |
महिला नहिं महफूज, दिवस बेमकसद महिला ||
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वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह बहुत ही सुन्दर एक से बढ़कर एक कुण्डलिया वर्त्तमान घटना का सुन्दर चित्रण. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteसटीक चोट ...
ReplyDeleteआभार !