दहले दिल्ली देश, दरिंदा दुष्ट दहाड़े -
भड़की भारी भीड़ फिर, कब तक सहे अधर्म ।
घायल करता मर्म को, प्रतिदिन का दुष्कर्म ।
प्रतिदिन का दुष्कर्म, पेट गुडिया का फाड़े ।
दहले दिल्ली देश, दरिंदा दुष्ट दहाड़े ।
नहीं सुरक्षित दीख, देश की दिल्ली लड़की ।
माँ बेटी असहाय, पुन: चिंगारी भड़की ॥
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दाग लगाए दुष्टता, पर दिल्ली दिलदार ।
शील-भंग दुष्कर्म पर, चुप शीला-सरकार । चुप शीला-सरकार, मिनिस्टर सन्न सुशीला ।
दारुण-लीला होय, नारि की अस्मत लीला ।
नीति-नियम कानून, व्यवस्था से भर पाए ।
पुलिस दाग के तोप, दाग पर दाग लगाए ॥
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धाता कामी कापुरुष, रौंदे बेबस नार ।
बरबस बस पर चढ़ हवस, करे जुल्म-संहार । करे जुल्म-संहार, नहीं मिल रही सुरक्षा । गली हाट घर द्वार, सुरक्षित कितनी कक्षा । करो हिफाजत स्वयं, कुअवसर असमय आता । हुआ विधाता बाम, पुरुष जो बना बिधाता ॥ |
छद्म वेश धर दुष्टता, पाए क्योंकर ठौर ।
बोझिल है वातावरण , जहर बुझा नव-दौर ।
जहर बुझा नव-दौर, गौर से दुष्ट परखिये ।
भरे पड़े हैवान, सुरक्षित बच्चे रखिये ।
दादा दादी चेत, पुन: ले जिम्मा रविकर ।
विश्वासी आश्वस्त, लूटते छद्म वेश धर ॥
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सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआप की ये रचना 26-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
बहुत अच्छा भाव
ReplyDeletelatest post सजा कैसा हो ?
latest post तुम अनन्त
arajakta ka bolbala hai ...
ReplyDeleteदरिंदों का राज है आज दिल्ली में | बहुत सुन्दर गुरूजी |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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bhot khub.....
ReplyDeleteबहुत अच्छा
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