"क्षमा -याचना सहित" 
हर  लेख  को  सुन्दर कहा,  श्रम  को  सराहा हृदय से,  
अब  तर्क-संगत  टिप्पणी  की  पाठशाला  ले  चलो ||

खूबसूरत  शब्द  चुन  लो,  भावना  को  कूट-कर के 
माखन-मलाई में मिलाकर, मधु-मसाला  ले  चलो  |
 
 
विज्ञात-विज्ञ  विदोष-विदुषी  के विशिख-विक्षेप मे | 
इस वारणीय विजल्प पर, इक विजय-माला ले चलो |  वारणीय=निषेध करने योग्य विजल्प=व्यर्थ बात विशिख=वाण
            विदोष-विदुषी=  निर्दोष विदुषी                 विज्ञात-विज्ञ= प्रसिध्द विद्वान        
क्यूँ दूर से निरपेक्ष होकर, हाथ करते हो खड़े -
ना आस्तीनों  में  छुपाओ,  तीर - भाला  ले  चलो ||
टिप्पणी के गुण सिखाये, आपका अनुभव सखे,
चार-छ: लिख कर के चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
चार-छ: लिख कर के चुन लो, मस्त वाला ले चलो ||
लेखनी-जिभ्या जहर से जेब में रख लो, बुझा कर -
हल्की सफेदी तुम चढ़ाकर,  हृदय-काला  ले  चलो |
टिप्पणी जय-जय करे,  इक लेख पर दो बार हरदम- 
कविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |
 
वाह रविकर सर क्या बात है हर दिन कुछ न कुछ नया लाते हैं हम सबके मन बहलाते हैं। आपकी जय हो।
ReplyDeleteबहुत अच्छा श्रीमान जी !!
ReplyDeleteसच कहती रचना।
ReplyDeleteसादर
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteटिप्पणी जय-जय करे, इक लेख पर दो बार हरदम-
ReplyDeleteकविता अगर 'रविकर' रचे तो, संग-ताला ले चलो |
:)
रचनाओं पर छंद के रूप में त्वरित और सार्थक टिप्पणी देने का आपका अंदाज सभी पसन्द कर रहे हैं|
behtarin prastuti
ReplyDeleteऔर यदि .....
ReplyDeleteरंज रचनाकार से, न झांको रचना की ओर
रास्ता नापते चलो ......
टिपण्णी के गुर के लिए बहुत बहुत बधाई
.......सादर!
कुछ न कहने से कुछ कहना ही बेहतर है!
ReplyDeleteयहाँ आये होंगे तो रचनाएँ तो पढ़ी ही होंगी!