बढ़िया घटिया पर बहस, बढ़िया जाए हार |
घटिया पहने हार को, छाती रहा उभार |
घटिया पहने हार को, छाती रहा उभार |
छाती रहा उभार, दूर की लाया कौड़ी |
करे सटीक प्रहार, दलीले भौड़ी भौड़ी |
तर्कशास्त्र की जीत, हारता मूर्ख गड़रिया |
बढ़िया बढ़िया किन्तु, तर्क से हारे बढ़िया ||
मेरे सुपुत्र का ब्लॉग
आज के व्यंजन
kush
सोते कवि को दे जगा, गैस सिलिंडर आज ।
असम जला, बादल फटा, गरजा बरसा राज ।
गरजा बरसा राज, फैसला पर सरकारी ।
मार पेट पर लात, करे हम से गद्दारी ।
कवि "कुश" जाते जाग, पुत्र रविकर के प्यारे ।
ईश्वर बिन अब कौन, यहाँ हालात सुधारे ।।
बहुत खूब !
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी की शुभकमनायें...
ReplyDeleteरविकर जी राह दिखाये ,बेटा करे कमाल
ReplyDeleteएक दिन ऐसा आएगा,कवि कुश करे धमाल,,,,
रविकर कवितापुष्प है कुंडलियाँ अनमोल
ReplyDeleteअपनी छोटी समझ से आनन्द तू न तोल
आनन्द तू न तौल बडे दिग्गज हैं हारे
तेरी कौन बिसात अरे नादान बेचारे
पढता जा बस इनकी ये प्यारी रचनाएँ
जीवन में शायद तू भी रचना कर पाए ।।
श्रीमान ! आभार है, शिरोधार्य उपदेश |
Deleteहार-जीत की चाह से, सदा बढ़े हैं क्लेश |
सदा बढ़े हैं क्लेश, द्वेष रविकर नहिं करता |
पढ़कर रचना श्रेष्ठ, सदा ही स्वयं निखरता |
जयतु संस्कृत जगत, जगत में जो निखार है |
योगदान अनमोल, श्रीमान आभार है ||