Followers

Friday 14 September 2012

अन्दर लिखते सीन, करें बाहर सब नाटक-

मची हाय-तोबा विकट, सड़कों पर कुहराम |
राम नाम ही सत्य है, करे प्रदर्शन जाम |

करे प्रदर्शन जाम, कहा की है यह ताकत |
ताकत माया बाम, मुलायम ममता झाँकत |

अन्दर लिखते सीन, करें बाहर सब नाटक |
शतक पाप शिशुपाल, नहीं न, गर्दन काटत ||


पैदा खुदरा पूत, आठवां कृष्णा नामा-रविकर

सुवन सातवाँ सिलिंडर, माया लड़की रूप ।
छूट उड़ी आकाश की, वाणी सुन रे भूप ।
वाणी सुन रे भूप, कंस कंगरसिया मामा।
पैदा खुदरा पूत, आठवां कृष्णा नामा ।
लेगा तेरे प्राण, यही वह पुत्र आठवाँ ।
किचेन देवकी जेल, कहे है सुवन सातवाँ ।।

सिली सिलिंडर सनसनी, मेहरबान मक्कार  |
प्रोसेस्ड खाने का करे, अब प्रचार
सरकार |

अब प्रचार
सरकार, पुरातन भोजन भूलो |
पाक कला त्यौहार, भूल कर केक कुबूलो |

फास्ट फूड भरमार, तरीके नए सोचिये |
पाई फुर्सत नारि, सतत अब नहीं कोंचिये ||


गैस सिलिंडर चलेगा पूरे दो महीने : है न उपाय-

 दाने खा लो अंकुरित, पी लो सत्तू घोल ।
पाव पाइए प्रेम से, ब्रेड पैकेट लो मोल ।
ब्रेड पैकेट लो मोल, लंच में माड़-भात खा ।
काटो मस्त सलाद, शाम को मूढ़ी चक्खा । 
चाय बना इक बार, डालिए  हॉट पॉट में ।
फास्ट फूड दो मिनट, पकाओ एक लाट में ।।


आशा है मेहमान की, होना नहीं निराश ।
खिला बताशा दे पिला, पानी बेहद ख़ास ।
पानी बेहद ख़ास, पार्टी उससे मांगो ।
करिए ढाबा विजिट, शाम को बाहर भागो ।
ख़तम होय न गैस, गैस काया में पालो ।
न तलना ना भून, सदा हर चीज उबालो  ।।

मा मू ली   बा पु-रा-जमा, जल डी-जल जंजाल ।
गैस सिलिंडर सातवाँ, छील बाल की खाल ।
छील बाल की खाल, सुबह का हुआ नाश्ता ।
चार चने की दाल, लंच में चले पाश्ता ।
फास्ट फूड ब्रेड जैम,  किचेन माता जी भूली ।
मूली गाजर काट,  बने  मुश्किल  मामूली ।

आग लगे डीजल जले, तले *पकौड़ी पन्त -

चाटुकार *चंडालिनी, चले चाट सामन्त । 
आग लगे डीजल जले, तले *पकौड़ी पन्त ।

तले पकौड़ी पन्त, कीर्ति मँहगाई गाई ।
गैस सिलिन्डर ख़त्म, *कोयले की अधमाई ।

*इडली अल्पाहार, कराये भोजन *जिंदल ।
इटली *पीजा रात, मनाते मोहन मंगल ।।
प्रश्न : तारांकित शब्दों के अर्थ बताएं ।।

बने नहीं पर न्यूज, लाख मारे मँहगाई

बावन शिशु हरदिन मरें, बड़ा भयंकर रोग ।
खाईं में जो बस गिरी, उसमें बासठ लोग ।

उसमें बासठ लोग, नाव गंगा में डूबी ।
दंगे मार हजार, पुलिस नक्सल बाखूबी ।

गिरते कन्या भ्रूण, पड़े अब खूब दिखाई ।
बने नहीं पर न्यूज, लाख मारे मँहगाई ।। 

लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई-

मगन मना मानव मुआ, याद्दाश्त कमजोर |
लप्पड़ थप्पड़ छड़ी अब, चाबुक रहा खखोर |

चाबुक रहा खखोर, बड़ी यह चमड़ी मोटी  |
न कसाब न गुरू, घुटाला हाला घोटी |

लेकिन दर्पण अगर, दिखा दो इसको कोई |
भौंक भौंक मर जाय, लाश पर लज्जा रोई ||

5 comments:

  1. दादा बहुत आला !है !बधाई .
    ram ram bhai
    शनिवार, 15 सितम्बर 2012
    सज़ा इन रहजनों को मिलनी चाहिए

    ReplyDelete
  2. आपके यह दोहे सौगात हैं समझने वालो के लिए ! आभार रविकर भाई ...

    ReplyDelete
  3. एक से बढ़कर कर एक दोहे हैं सर बहुत खूब

    ReplyDelete
  4. सरकार की पूरी माया लिख दी आपने ..

    ReplyDelete
  5. बहुत खूब
    एक से बढ़कर कर एक दोहे

    ReplyDelete