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किश्ती डूबे किश्त में, काट *धारु-जल ख़्वाब । 
निकला तेल जनाब का, खाना करे खराब । 
  *धारु-जल=तलवार   
खाना करे खराब, ताब लेकिन है बाकी । 
वालमार्ट का दाब,  पड़ेगी मार बला की । 
चढ़ा रहे हैं तेल, केतु-राहु ल-खत भिश्ती । 
पानी-पानी पुश्त, भंवर में डूबे किश्ती  ।।    | 
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प्रेम-पुजारी प्रार्थना, हाथ दुबारा थाम ।   चले छोड़कर दूर क्यूँ , कर रविकर बदनाम । 
 
कर रविकर बदनाम, काम का 'पहला' बन्दा । सदा काम ही काम, याद कर पल-आनन्दा । 
  करूँ प्रशंसा नित्य, रखूं ना कभी उधारी । तेरे पास प्रमाण, बड़ा मैं प्रेम-पुजारी ।। | 
 
किश्ती डूबे किश्त में, काट *धारु-जल ख़्वाब ।
ReplyDeleteनिकला तेल जनाब का, खाना करे खराब ।
Interest rate भी कम होने का नाम नहीं ले रहे ! :)
नाम का असर इंसान पर पड़ता है. और पड़ना भी चाहिये. ऋषियों ने कुछ सोचकर ही मनुष्य का नाम मनुष्य रखा है. मनुष्य को भी अपने नाम को समझकर काम करना चाहिये.
ReplyDeleteकिश्ती डूबे किश्त में, काट *धारु-जल ख़्वाब ।
ReplyDeleteनिकला तेल जनाब का, खाना करे खराब ।
*धारु-जल=तलवार
खाना करे खराब, ताब लेकिन है बाकी ।
वालमार्ट का दाब, पड़ेगी मार बला की ।
चढ़ा रहे हैं तेल, केतु-राहु ल-खत भिश्ती ।
पानी-पानी पुश्त, भंवर में डूबे किश्ती ।।
क्या कहने हैं अभिव्यक्ति के
प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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करूँ प्रशंसा नित्य, रखूं ना कभी उधारी
ReplyDeleteतेरे पास प्रमाण, बड़ा मैं प्रेम-पुजारी
beautiful poem