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Monday 3 December 2012

बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -

२१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२

काम से तो रोज घूमे काम बिन भी घूम बन्दे |
नाम में कुछ ना धरा गुमनाम होकर झूम बन्दे |


बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -
कुछ करो या ना करो हर ठाँव  को ले चूम बन्दे ।

बेवफा है जिंदगी इसको नहीं ज्यादा पढो अब -
दर्शनों में आजकल मचती रही यह धूम बन्दे । 

 दे उड़ा धन-दौलतें सब, कौन तू लाया जहाँ में-
मस्तियाँ देखो निकलकर पस्त हो मत सूम बन्दे  ।

 ले पहन रविकर लँगोटी, एक खोटी सी चवन्नी -
राह पर चौकस उछालो, जब नहीं मालूम बन्दे ।।

12 comments:

  1. बहुत खूबशूरत सुंदर प्रस्तुति,,,

    recent post: बात न करो,

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  2. मस्ती का आलम साथ चला हम घूल उड़ाते जहाँ चले!

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  3. वाह-वाह !शानदार !!
    आप टिप्पणियों में काव्य बहुत झाड़ते है इसलिए एक मैं भी अपनी टिपण्णी में झाड कर देखता हूँ :))
    उपज पे रसायन मेहरबान हुए, कुछ भी न पौष्टिक बचा,
    गर कवक ही खानी है तुझको, खा के देख मसरूम बन्दे।

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  4. सत्यानाश हो इस स्पैम का, जो मेरी टिपण्णी खा गई,
    मेहनत का ऐसी फायदा क्या, जाना पड़े जह्हनूम बन्दे। :) :)

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  5. बेहतर लेखन !!

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  6. padhkar bahut achha laga:)
    dhanyawaad in panktiyo ke liye.

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  7. अपने ही अंदाज़ की बंदिश संवाद करती हुई बतियाती उपदेश देती हुई सी .

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  8. वाह ... बहर में रंगें है रंग आज ...

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  9. नाम में कुछ ना धरा गुमनाम होकर झूम बन्दे
    सुंदर प्रस्तुति

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  10. नव वर्ष चौतरफा शुभ हो आपके आसपास 24x7x365 दिन

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  11. क्या बात है बंधु ! भाव राग रंग दर्शन सब एक संग .

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