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Wednesday, 28 November 2012

नयन से चाह भर, वाण मार मार कर -

2-घनाक्षरी


श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता सर्ग-4/सर्ग-5

 के अंश 
 नयन से चाह भर, वाण मार मार कर
हृदय के आर पार, झूरे चला जात है | 

नेह का बुलाय लेत, देह झकझोर देत
झंझट हो सेत-मेत, भाग भला जात है |

बेहद तकरार हो, खुदी खुद ही जाय खो
पग-पग पे कांटे बो, प्रेम गीत गात है |

मार-पीट करे खूब, प्रिय का धरत रूप
नयनों से करे चुप, ऐसे आजमात  है ||



 धरती के वस्त्र पीत, अम्बर की बढ़ी प्रीत 
भवरों की हुई जीत, फगुआ सुनाइये ।

जीव-जंतु हैं अघात, नए- नए हरे पात 
देख खगों की बरात, फूल सा लजाइये ।

चांदनी शीतल श्वेत, अग्नि भड़काय देत 
कृष्णा को करत भेंट, मधुमास आइये ।  

धीर जब अधीर हो, पीर ही तकदीर हो 
उनकी तसवीर को , दिल में बसाइए ।।

6 comments:

  1. बहुत खूब सुन्दर प्रस्तुति,,,,,

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  2. धरती के वस्त्र पीत, अम्बर की बढ़ी प्रीत
    भवरों की हुई जीत, फगुआ सुनाइये ।

    क्या बात है दोस्त शब्दों में बही मधुर बयार है ....

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  3. बढिया कविता

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  4. धरती के वस्त्र पीत, अम्बर की बढ़ी प्रीत
    भवरों की हुई जीत, फगुआ सुनाइये ।
    रविकर भाई दोहा जलवायु सम्मलेन के शिखर पर आ गई है आपकी कीमती अर्थ पूर्ण टिपण्णी जो पोस्ट की हाई लाईट है .आभार आपका .

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  5. बहुत ही सुंदर...क्या कहूं...

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