झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ घर-बाहर ।
दीप बले बहु बल्ब जले तब आतिशबाजि चलाय भयंकर ।
दाग रहे खलु भाग रहे विष-कीट पतंग जले घनचक्कर ।
नाच रहे खुश बाल धमाल करे मनु तांडव हे शिव-शंकर ।।
मत्तगयन्द सवैया
दीवाली में जुआ
मीत समीप दिखाय रहे कुछ दूर खड़े समझावत हैं ।
बूझ सकूँ नहिं सैन सखे तब हाथ गहे लइ जावत हैं ।
जाग रहे कुल रात सबै, हठ चौसर में फंसवावत हैं ।
हार गया घरबार सभी, फिर भी शठ मीत कहावत हैं ।।
दाग रहे खल भाग ....मस्त रचना !
ReplyDeleteलिव इन रिलेशनशिप का ज़माना है। घी के दीपों का स्थान बल्ब ने ले लिया है। अब चूड़ियों की खनक के साथ दीपदान के दृष्य सनीमा में भी नहीं दिखायी देते। दिवाली मॉडर्न हो गयी है।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना सर दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपको भी धनतेरस और दीपावली की ढेर सारी मंगलकामनाएं.
ReplyDeleteवाह ...बहुत सुंदर .... दीपोत्सव की शुभकामनायें
ReplyDeleteati sundar diwali ki bahut bahut shubhkamna ....
ReplyDeleteमितवा,ऐसी रचनाओं से,कभी आयेगी क्रान्ति|
ReplyDeleteऔर व्यर्थ के पाखंडों की,निश्चय मिटेगी 'भ्रान्ति' ||
मेरे मीत दीवाली की लाखों तुम्हें दुआएं |
ReplyDeleteकेवल 'सुखद-सुगन्ध' परोसें,'युग की सभी हवाएं' ||
बहुत सुंदर
ReplyDeleteदीपोत्सव की शुभकामनायें