Followers

Saturday, 10 November 2012

झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ घर-बाहर-

दीप पर्व की
हार्दिक शुभकामनायें

देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर


किरीट  सवैया ( S I I  X  8 )
झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ  घर-बाहर ।

  दीप बले बहु बल्ब जले तब आतिशबाजि चलाय भयंकर ।

 दाग रहे खलु भाग रहे विष-कीट पतंग जले घनचक्कर ।

नाच रहे खुश बाल धमाल करे मनु तांडव  हे शिव-शंकर ।।


मत्तगयन्द सवैया  
दीवाली में जुआ  
मीत समीप दिखाय रहे कुछ दूर खड़े समझावत हैं ।
 
बूझ सकूँ नहिं सैन सखे  तब हाथ गहे लइ जावत हैं ।
 
जाग रहे कुल रात सबै, हठ चौसर में फंसवावत  हैं ।
 
हार गया घरबार सभी, फिर भी शठ मीत कहावत हैं ।।

9 comments:

  1. दाग रहे खल भाग ....मस्त रचना !

    ReplyDelete
  2. लिव इन रिलेशनशिप का ज़माना है। घी के दीपों का स्थान बल्ब ने ले लिया है। अब चूड़ियों की खनक के साथ दीपदान के दृष्य सनीमा में भी नहीं दिखायी देते। दिवाली मॉडर्न हो गयी है।

    ReplyDelete
  3. बेहद सुन्दर रचना सर दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  4. आपको भी धनतेरस और दीपावली की ढेर सारी मंगलकामनाएं.

    ReplyDelete
  5. वाह ...बहुत सुंदर .... दीपोत्सव की शुभकामनायें

    ReplyDelete
  6. ati sundar diwali ki bahut bahut shubhkamna ....

    ReplyDelete
  7. मितवा,ऐसी रचनाओं से,कभी आयेगी क्रान्ति|
    और व्यर्थ के पाखंडों की,निश्चय मिटेगी 'भ्रान्ति' ||

    ReplyDelete
  8. मेरे मीत दीवाली की लाखों तुम्हें दुआएं |
    केवल 'सुखद-सुगन्ध' परोसें,'युग की सभी हवाएं' ||

    ReplyDelete
  9. बहुत सुंदर
    दीपोत्सव की शुभकामनायें

    ReplyDelete