रविकर-पुंज
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Sunday, 25 November 2012
शोहरत खातिर खोलते, षड्यंत्रों की लैब -
फितरत चालों में दिखी, सालों से है ऐब ।
शोहरत खातिर खोलते, षड्यंत्रों की लैब ।
षड्यंत्रों की लैब, करे नीलामी भारी ।
खाय दलाली ढेर, उजाड़े प्राकृत सारी ।
शुद्ध हवा फल फूल, धूप की बाकी हसरत ।
हरकत ऊल-जुलूल, बदलती रहती फितरत ।।
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