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Tuesday, 6 November 2012

पाजी शहजादा | मुश्किल में काजी ||

 गजल की एक और कोशिश-

 हारे हो बाजी ।
छोड़ो लफ्फाजी ।

होती है गायब -
वो कविताबाजी ।।

पल में मर जाती 
रचनाएं ताज़ी ।।

दिल्ली से लौटे -
होते हैं हाजी  ।।

पाजी  शहजादा
मुश्किल में काजी ।।

रिश्वत पर आधी ।
रविकर भी राजी ।।

2 comments:

  1. वाह रविकर सर क्या बात है लाजवाब रचना बधाई स्वीकारें

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  2. पल में मर जाती रचनाएं ताज़ी
    लाजवाब रचना

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