2122 / 2122 / 2122 / 212
यह जुबाँ कहती जुबानी, जो जवानी ढाल पर ।
क्या करे शिकवा-शिकायत, खुश दिखे बदहाल पर ।|
आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।
कर बगावत हुश्न से जब इश्क अपने आप से -
थूक कर चलता बना बेखौफ माया जाल पर ।।
आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर
चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।
वापसी मुश्किल तुम्हारी, तथ्य रविकर जानते-
कौन किसकी इन्तजारी कर सका है साल भर ||
यह जुबाँ कहती जुबानी, जो जवानी ढाल पर ।
ReplyDeleteक्या करे शिकवा-शिकायत, खुश दिखे बदहाल पर ।|
वाह !लाजबाब, बहुत खूब , बहुत ही उम्दा, रविकर जी !
सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteआँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर
ReplyDeleteचाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।
जबरदस्त्
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 4/12/12को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteआँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
ReplyDeleteनाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ..
वाह .. क्या बात है ... शेर के माध्यम से कितना कुछ कहा ...