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"आप" का उदय और भाजपाईयो का रुदन:एक लेखा जोखा
DR. PAWAN K. MISHRA
मोदी को करके खफा, योगी को नाराज ।
घर से बाहर "जेठ" कर, चली बचाने लाज ।
चली बचाने लाज, केजरी देवर प्यारा ।
चूमा-चाटी नाज, बदन जब नगन उघारा ।
हुई फेल सब सोच, बिठा नहिं पाई गोदी ।
बचे हुवे अति हीन, विरोधी दिखते मोदी ।।
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अरुंधती राय : केजरीवाल के खुलासे
मनोज पटेल
हत्यारे फासिस्ट ठग, व्यभिचारिणी जमात | भ्रष्टाचारी व्यवस्था, खुराफात अभिजात | खुराफात अभिजात, भूल दंगे से आगे | देश गर्त में जात, मरें अब सभी अभागे | देख देख श्मशान, अनीती से नहिं मारें | शासन करते रहे, सदा से ही हत्यारे || |
@चूमा-चाटी नाज, बदन जब नगन उघारा
ReplyDeleteमैने निरंतर इतनी गन्दी लाइन हैडिंग पर अपनी आपत्ति दर्ज की हैं और आज भी कर रही हूँ .
आदरणीय रचना जी,
ReplyDeleteजिस सन्दर्भ में रविकर जी ने ये पंक्तियाँ लिखी हैं। वह भाजपा पार्टी की तुलना एक चरित्रहीन स्त्री से करते हुए की हैं।
दुश्चरित्र स्त्री अपने लाभ या अपना महत्व बनाने के लिए किसी हद तक जा सकती है।
क्योकि 'पार्टी' एक स्त्रीवाची शब्द है इसलिए ऐसा हुआ है। मुझे अन्य कोई कारण विशेष नज़र नहीं आता।
मुझे याद है भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने भी अपने काव्यात्मक नाटक 'मुद्रा राक्षस' में 'राजनीति' की एक 'वैश्या' से तुलना की थी। वह भी प्रासंगिक ही है।
यहाँ 'जेठ' योगी' आदि शब्द प्रयोगों में श्लेष देखने को मिल रहा है।
कविताओं का कभी-कभी हलके मनोविनोद के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
विद्यापति कवि ने 'शिव विवाह' के समय 'शिव की नग्नता' का बहुत 'हास्यात्मक' वर्णन किया है। मुझे लगता है कि आप पाठक मित्रों को यह बात पता होगी ही।
इसलिए रविकर जी द्वारा लिखी गयी आपत्ति वाली पंक्तियाँ दूसरी दृष्टि से बुरी स्त्री के चरित्र के अनुकूल ही हैं।
@वह भाजपा पार्टी की तुलना एक चरित्रहीन स्त्री से करते हुए की हैं।
ReplyDeleteस्त्री के चरित्र पर हमेशा ऊँगली उठ जाती हैं क्यों ??? कौन सी स्त्री का चरित्र ख़राब हैं ? वेश्या तक अपना शरीर इस लिये बेचती हैं क्युकी एक ग्राहक हैं कौन हैं वो ग्राहक ? उस के चरित्र को लेकर क्यूँ कविता में सन्दर्भ नहीं दिये जाते ???? हमेशा दुश्चरित्र स्त्री कवियों को कैसे मिल जाती हैं ?? हमे तो नहीं दिखती इतनी दुश्चरित्र स्त्रियाँ जितना कवी और लेखको को दिखती हैं .
@क्योकि 'पार्टी' एक स्त्रीवाची शब्द है इसलिए ऐसा हुआ है।
पार्टी एक जेंडर न्यूट्रल शब्द हैं जैसे ब्लोग्गर और ये संज्ञा हैं पार्टी मेरे ख्याल से हिंदी का शब्द है ही नहीं इसका उपयोग सबसे पहले 1919 में शायद हुआ था और ये latin भाषा से आया हैं शायद . हर शब्द का स्त्री लिंग बनाना कितना उचित हैं आप हिंदी के प्रकांड विद्वान मुझसे बहुत बेहतर जानते हैं ऐसा मेरा मानना हैं
ReplyDeleteस्त्रीवादी विमर्श की उत्तेजना पुराने घिसे पिटे बिम्बों को लेकर है .व्यक्तिक नहीं दिखती .
....और बढिया कविता बनाइये रविकर जी।
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