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Tuesday, 13 November 2012

तेल नहीं घर आज रहा, फिर दीपक डारि जलावस की -

दीवट दीमक लील गई, रजनी घनघोर अमावस की ।
दामिनि दारुण दाप दिखा, ऋतु बीत गई अब पावस की ।
कीट पतंग बढे धरती, धरती नहिं पाँव, भगावस की ?
तेल नहीं घर आज रहा, फिर दीपक डारि जलावस की ??




झल्कत झालर झंकृत झालर झांझ सुहावन रौ  घर-बाहर ।

  दीप बले बहु बल्ब जले तब आतिशबाजि चलाय भयंकर ।

 दाग रहे खलु भाग रहे विष-कीट पतंग जले घनचक्कर ।

नाच रहे खुश बाल धमाल करे मनु तांडव  हे शिव-शंकर ।।

संध्या वंदन आरती, हवन धूप लोहबान |
आगम निगम पुराण में, शायद नहीं बखान |
शायद नहीं बखान, परम्परा किन्तु पुरानी |
माखी माछर भाग, नीम पत्ती सुलगानी |
भारी बड़े विषाणु, इन्हें बारूद मारती |
शुरू करें इक साथ, पुन: वंदना आरती ||


डीजल का काला धुंआ, फैक्टरी का जहर |
कल भी था यह केमिकल, आज भी ढाता कहर |
आज भी ढाता कहर, हर पहर हुक्का बीडी |
क्वायल मच्छरमार, यूज करती हर पीढ़ी |
डिटरजेंट, विकिरण, सहे सब पब्लिक पल पल |
बम से पर घबराय, झेलता  काला डीजल ||


भिनन्दन दीपावली, दीप मालिका मस्त ।
खें रँगोली विविधता, *बेदक  मार्ग प्रशस्त ।।
बेदक मार्ग प्रशस्त, विविध पकवान पके हैं ।
लाला लुल लाचार,लवासी लसक छके हैं ।
तरानी वन्दना, लगा के भेजी चन्दन ।
त्रिलोचन सा नाच, करें सबका अभिनन्दन ।

वेद मानने वाला =हिन्दू
लसक = नाचने वाला
लवासी=गप्पी

त्रिलोचन की जद जरा, करती है भयभीत ।
भोले की औघड़ दशा, वैसे तो नवनीत ।
वैसे तो नवनीत, मगर हैं तो संहारक ।
मारक दिखे त्रिशूल, नाग जब तब फुफकारत ।
इसीलिए आशीष, उमा का लेकर मोचन ।
आया हूँ निष्काम, 'काम' नहिं कर त्रिलोचन ।।

8 comments:

  1. ***********************************************
    धन वैभव दें लक्ष्मी , सरस्वती दें ज्ञान ।
    गणपति जी संकट हरें,मिले नेह सम्मान ।।
    ***********************************************
    दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
    ***********************************************
    अरुण कुमार निगम एवं निगम परिवार
    ***********************************************

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  2. मदिरा सवैया (7 भगण,अंत में 1 गुरु)

    कातिक मास अमावस की ,रजनी सजनी रहि दीप जला

    खावत है पकवान, नहीं मन की पढ़ता सजना पगला

    बोल थके नयना कजरा ,अँचरा कुछ भी नहि जोर चला

    फूल झरी मुरझाय चली, नहि बालम का हिरदे पिघला ||

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  3. तेल नहीं घर आज रहा, फिर दीपक डारि जलावस की
    beautiful poem

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  4. काव्य सौन्दर्य के नए प्रतिमान नित बुनते रविकर जी सलामत रहें .बहुत सुन्दर प्रस्तुति है भाई साहब .बधाई .

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  5. बहुत सुंदर, अलंकारों से भरी साहित्यिक प्रस्तुति |

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  6. अभिनन्दन दीपावली, दीप मालिका मस्त ।
    लखें रँगोली विविधता, *बेदक मार्ग प्रशस्त ।।
    बेदक मार्ग प्रशस्त, विविध पकवान पके हैं ।
    लाला लुल लाचार,लवासी लसक छके हैं ।
    खतरानी वन्दना, लगा के भेजी चन्दन ।
    त्रिलोचन सा नाच, करें सबका अभिनन्दन ।

    वेद मानने वाला =हिन्दू
    लसक = नाचने वाला
    लवासी=गप्पी

    त्रिलोचन की जद जरा, करती है भयभीत ।
    भोले की औघड़ दशा, वैसे तो नवनीत ।
    वैसे तो नवनीत, मगर हैं तो संहारक ।
    मारक दिखे त्रिशूल, नाग जब तब फुफकारत ।
    इसीलिए आशीष, उमा का लेकर मोचन ।
    आया हूँ निष्काम, 'काम' नहिं कर त्रिलोचन ।।
    सरजी !क्या बात !क्या बात !क्या बात !

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  7. BEHAD JORDAR PRASTUTI,ANANDIT KARNE VALI RACHANAYE

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