अंगारों पर ही बसा, है झरिया अधिकाँश |
भू-धसान हरदिन घटे, जलता जिन्दा मांस |
जलता जिन्दा मांस, जलाने वालों सुन लो |
इक बढ़िया सी मौत, स्वयं से पहले चुन लो |
खड़ी हमारी खाट, करे चालाक मिनिस्टर |
करता बंदरबांट, कटे वासेपुर अन्दर ||
भू-धसान हरदिन घटे, जलता जिन्दा मांस |
जलता जिन्दा मांस, जलाने वालों सुन लो |
इक बढ़िया सी मौत, स्वयं से पहले चुन लो |
खड़ी हमारी खाट, करे चालाक मिनिस्टर |
करता बंदरबांट, कटे वासेपुर अन्दर ||
कौड़ी कौड़ी बेंचते, झारखंड का माल ।
बाशिंदे कंगाल है, पूछे मौत सवाल ।
पूछे मौत सवाल, आज ही क्या आ जाऊं ?
पल पल देते टाल, हाल क्या तुम्हें बताऊँ?
डूब मरे सरकार, घुटाले करके भारी ।
होते हम तैयार, रखो तुम भी तैयारी ।।
अंग नंग अंगा दफ़न, कफन बिना फनकार ।
रंग ढंग बदले सकल, रहा लील अंगार ।
रहा लील अंगार, सार जीवन का पाया ।
होवे न उद्धार, आग जिसने भड़काया ।
रविकर भरसक खाय, लिए मुट्ठी अंगारा ।
राक्षस किन्तु जलाय, कोयला रखे दुबारा ।।
रंग ढंग बदले सकल, रहा लील अंगार ।
रहा लील अंगार, सार जीवन का पाया ।
होवे न उद्धार, आग जिसने भड़काया ।
रविकर भरसक खाय, लिए मुट्ठी अंगारा ।
राक्षस किन्तु जलाय, कोयला रखे दुबारा ।।
यह पढ़कर वो शायद डर जाएं ।
ReplyDeletebenazeer baat aur juda andaz.
ReplyDeleteवाह! सुंदर प्रस्तुति। काफ़ी खिंचाई की है :)
ReplyDeleteइतना मार्मिक प्रसंग है इस पर तो टिपण्णी करते भी नहीं बनता ,शरम उनको फिर भी नहीं आती
ReplyDeleteमजबूरी साझी सरकार ,
हाथ में कोयले ,ऊखल में सिर ,
करेंगे मिलकर भ्रष्टाचार ,
चारा तो हम ही खायेंगे ,
करनी अपनी भुगतो यार .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
रविवार, 19 अगस्त 2012
मीग्रैन और क्लस्टर हेडेक का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में
मार्मिक शब्दचित्र.. आपके अपने स्टाइल से परे!!
ReplyDeleteबहुत उत्तम कुंडलियाँ सार्थक व्यंग्य बहुत खूब हार्दिक बधाई
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteक्या कहने
सोचनीय !
ReplyDeleteमार्मिक पोस्ट।
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