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Thursday, 23 August 2012

बांछे खिलना / ख़्वाब देखना

बांछे खिलना  


बाँझिन को हो पुत्र रत्न, बने बांगड़ू बीर |
मिले हूर लंगूर को, सेंठा मारक तीर  | 
सेंठा मारक तीर, बने तो बांछे खिलती |
विकसित मानस कली,  मुरादें यूँ  हीं मिलती |
आठ पर्व नौ बार, फूल कर कुप्पा होना |
कुप्पी का क्या काम, बेंच कर घोडा सोना || 


ख़्वाब देखना 


अनलिमिटेड सपने दिखा, ठगे गुरू घंटाल |
लुटते औंधे मुंह पड़े, समय माल कंगाल |
समय माल कंगाल, धकेले बदहाली में |
ऊँचे ऊँचे ख़्वाब, बहे गन्दी नाली में |
पहले लो मुंह धोय,  और औकात आँक लो |
तदनुसार हों ख़्वाब, उछलकर ऊँच झाँक लो || 

2 comments:

  1. बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
    बधाई

    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

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  2. बहुत सुन्दर .आभार आपका ,लिखवाया हिंदी में भी आलेख ऑर्डर देकर . ..कृपया यहाँ भी पधारें -
    शनिवार, 25 अगस्त 2012
    आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं .
    गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html

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