नई पार्टी बन रही, हुवे पुराने फेल |
अन्ना से चालू करें, राजनीति का खेल |
अन्ना से चालू करें, राजनीति का खेल |
राजनीति का खेल, समर्पण पूर्ण चाहिए |
सच्चा खरा इमान, प्रमाणित किये आइये |
एफ़ी-डेविट आज, कराकर ले आया हूँ |
दो सौ रुपये खर्च, कष्ट से भर-पाया हूँ ||
अन्ना से उम्मीद है,बाकी दल बेजान,
ReplyDeleteरविकर सच्चा इसलिए,बचा हुआ ईमान !
एफ़ी-डेविट आज, कराकर ले आया हूँ |
ReplyDeleteदो सौ रुपये खर्च, तभी तो ले पाया हूँ ||
बहुत खूब !
मुश्किल सा लगता है पर नामुमकिन नहीं
सच्चे और इमानदार लोगों का राजनीति में आना .
जो 65 साल में नहीं हुआ वो चमत्कार अब तीन साल में होगा...लेकिन बड़ा सवाल है कि कैसे होगा ये ?
ReplyDeleteजो 65 साल में नहीं हुआ वो चमत्कार अब तीन साल में होगा...लेकिन बड़ा सवाल है कि कैसे होगा ये ?
ReplyDeletenice poem
ReplyDeletelets hope Anna party will set a good example and win elections
बाकी दल दलदल हुए ,अन्ना कमल समान
ReplyDelete"किरण " आस हैं ,केज़री बचा हुआ ईमान .
बढ़िया प्रस्तुति .
ram ram bhai
मंगलवार, 7 अगस्त 2012
भौतिक और भावजगत(मनो -शरीर ) की सेहत भी जुडी है आपकी रीढ़ से
कुछ अन्ना वहाँ हैं
ReplyDeleteकुछ अन्ना यहाँ है
बाकी अन्ना पता नहीं
कहाँ कहाँ हैं ?
बधाई हो रविकर जी, जो इतने में लायर को मना लिया,
ReplyDeleteदो सौ रूपये देकर ही ईमानदारी का एफीडेविट पा लिया !
मैं भी झख मार रहा हूँ इसे पाने को, आप तो बस अब ऐश करो,
मेरा वकील कहता है दस्तखत हेतु दो ईमानदार गवाह पेश करो !
पाँव में छाले पड़ गए , जब से शुरू हुए ये एफीडेविट के सिलसिले,
शहर कचहरी सब छान मारे हैं, मगर दो ईमानदार गवाह नहीं मिले !
वाह वाह
Deleteवाह भाई वाह-
एक अन्ना और दूसरा मैं
हो गए न दो गवाह-
पर दस्खत का दे देना एक हर पत्ता |
जय हो ||
हरा पत्ता ||
Deleteनामुमकिन लगता है,अन्ना का ये खेल
ReplyDeleteडिब्बे वही जुड जायेगें, चले पुरानी रेल,,,,,
कब तक बीनोंगे इसे, पूरी काली दाल।
ReplyDeleteबिस्तर बाँध निकल गये, अन्ना जी तत्काल।।
सुंदर रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई।