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Saturday, 25 August 2012

आँख रही नित मींज, मोतिया-बिन्द पालती-

आज पालती पौत्र को, पहले पाली पूत ।
पौत्र गरम मूते तनिक, आग रहा सुत मूत ।

आग रहा सुत मूत, टिफिन तब डबल बनाया ।
सुबह शाम मम भूख, चाय से अब निपटाया ।

ख्वाहिस की सब पूर,  किन्तु अब बात सालती ।
आँख रही नित मींज, मोतिया-बिन्द पालती ।।

5 comments:

  1. दिमाग लगाना पड़ता है
    समझने के लिये
    नहीं जब आता है तो
    मंगाना पड़ता है
    औपरेशन करवाये लियो बिंद का जाके बोल दियो !

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  2. नाती पोते सुता और सुत प्यार लुटाती,
    माता बनती, बनती है वह दादी नानी,
    गर्मी, आग, मोतिया औ' सहकर उपेक्षा,
    प्यार लुटाती, औरत की बस यही कहानी!

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  3. क्या खूब व्यंग्य है ....और मार्मिक भी !

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  4. beautiful perfect
    yehi kahani hai nari ki

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  5. ख्वाहिस की सब पूर, किन्तु अब बात सालती ।
    आँख रही नित मींज, मोतिया-बिन्द पालती ।।
    sahi kaha aapne
    rachana

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