तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |
जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |
जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |
मन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |
जैसे जाये जाग, वस्तु वस्तुत: नदारद |
पर बाकी सहभाग, पार कर जाए सरहद |
जड़ चेतन अवलोक, कहीं आलौकिक पावें |
लुटा रहे अविराम, लूट जैसे मन भावे |
तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग |
ReplyDeleteमन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग |
बढ़िया प्रस्तुति प्रेम विविधा पर .आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .
Shoulder ,Arm Hand Problems -The Chiropractic Approachhttp://veerubhai1947.blogspot.com/
बढ़िया प्रस्तुति प्रेम विविधा पर .आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .
ReplyDeleteShoulder ,Arm Hand Problems -The Chiropractic Approachhttp://veerubhai1947.blogspot.com/
तरह तरह के प्रेम हैं सबका अपना भाव ,
ReplyDeleteचेत सके तो चेत ले ,न चेते निर्भाव .
तरह तरह के प्रेम हैं, तरह तरह के राग
ReplyDeleteकहीं मेघ मल्हार तो , जलते कहीं चिराग
जलते कहीं चिराग , भाग के खेल निराले
जीवन उसका धन्य,जो सच्चा प्रेम जगाले
मधुरिम फिर श्रृंगार,मधुर हों गीत विरह के
सच्चा ढूँढे प्रेम, प्रेम हैं तरह - तरह के ||
तरह तरह के प्रेम हैं, अपना अपना राग ।
ReplyDeleteमन का कोमल भाव है, जैसे जाये जाग ।
प्रेम सा कोमल और कुछ नहीं।
लूट जैसे मन भावे
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति