विवाह पूर्व यौन सम्बंध की त्रासदी
रचना ईश्वर ने रची, तन मन मति अति-भिन्न |
प्राकृत के विपरीत गर, करे खिन्न खुद खिन्न |
प्राकृत के विपरीत गर, करे खिन्न खुद खिन्न |
करे खिन्न खुद खिन्न, व्यवस्था खुद से करता |
करे भरे वह स्वयं, बुढापा बड़ा अखरता |
नाड़ी में है ताब, आबरू की क्या चिंता |
अंत घड़ी जब पास, शुरू की गलती गिनता ||
beautiful
ReplyDeletewhen end is near all flashes back
अंत घड़ी जब पास, शुरू की गलती गिनता ||
ReplyDeleteगलती हो जाए तो सुधार लेना बेहतर.
अच्छी रचना.
शुक्रिया.
अभी हाल की राजनैतिक सुर्ख़ियों में नाड़ी की ताब के कारण चहरे की आब गिरवी रखने का तमाशा देख चुके हैं हम लोग!!
ReplyDeleteमज़ा आ गया!!
रचना ईश्वर ने रची, तन मन मति अति-भिन्न
ReplyDeleteक्या कहने इन पंक्तियों के ..
सुन्दर रचना..
कम शब्दों में गहरी बात....सुन्दर रचना....
ReplyDeleteनाड़ी में है ताब, आबरू की क्या चिंता |
ReplyDeleteअंत घड़ी जब पास, शुरू की गलती गिनता ||
आदरणीय रविकर जी होश दिलाती जोश को सम्हालने की ..अच्छी रचना बाद में फिर क्या हॉट है जब चिड़िया चुग गयी खेत ....जय श्री राधे
भ्रमर ५
शानदार प्रस्तुति.
ReplyDeleteश्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
रविकर जी,समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आकर
'फालोअर्स और ब्लोगिंग'के सम्बन्ध में मेरा
अपनी काव्यात्मक शैली में मार्ग दर्शन कीजियेगा,