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Sunday, 5 August 2012

रचना ईश्वर ने रची, तन मन मति अति-भिन्न-रविकर

विवाह पूर्व यौन सम्बंध की त्रासदी

रचना ईश्वर ने रची, तन मन मति अति-भिन्न |
प्राकृत के विपरीत गर, करे खिन्न खुद खिन्न |

करे खिन्न खुद खिन्न, व्यवस्था खुद से करता |
करे भरे वह स्वयं, बुढापा बड़ा अखरता  |

नाड़ी में है ताब, आबरू की क्या चिंता |
अंत घड़ी जब पास, शुरू की गलती गिनता ||

7 comments:

  1. beautiful
    when end is near all flashes back

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  2. अंत घड़ी जब पास, शुरू की गलती गिनता ||

    गलती हो जाए तो सुधार लेना बेहतर.

    अच्छी रचना.
    शुक्रिया.

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  3. अभी हाल की राजनैतिक सुर्ख़ियों में नाड़ी की ताब के कारण चहरे की आब गिरवी रखने का तमाशा देख चुके हैं हम लोग!!
    मज़ा आ गया!!

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  4. रचना ईश्वर ने रची, तन मन मति अति-भिन्न
    क्या कहने इन पंक्तियों के ..
    सुन्दर रचना..

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  5. कम शब्दों में गहरी बात....सुन्दर रचना....

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  6. नाड़ी में है ताब, आबरू की क्या चिंता |
    अंत घड़ी जब पास, शुरू की गलती गिनता ||
    आदरणीय रविकर जी होश दिलाती जोश को सम्हालने की ..अच्छी रचना बाद में फिर क्या हॉट है जब चिड़िया चुग गयी खेत ....जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  7. शानदार प्रस्तुति.
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    रविकर जी,समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आकर
    'फालोअर्स और ब्लोगिंग'के सम्बन्ध में मेरा
    अपनी काव्यात्मक शैली में मार्ग दर्शन कीजियेगा,

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