करे बहाना आलसी, अश्रु बहाना काम |
होय दुर्दशा देह की, जब से लगी हराम ।।
अन्न पकाना छोड़ दी, कान पकाना रोज |
सास-बहू में पिस रहा, अभिनेता मन खोज ।।
दही जमाना भूलती, रंग जमाना याद |
करे माडलिंग रात-दिन, बढ़ी मित्र तादाद ||
पुत्र खिलाना भाय ना, निकल शाम को जाय |
सदा खिलाना गुल नया, नया कजिन मुसकाय ||
होय दुर्दशा देह की, जब से लगी हराम ।।
अन्न पकाना छोड़ दी, कान पकाना रोज |
सास-बहू में पिस रहा, अभिनेता मन खोज ।।
दही जमाना भूलती, रंग जमाना याद |
करे माडलिंग रात-दिन, बढ़ी मित्र तादाद ||
पुत्र खिलाना भाय ना, निकल शाम को जाय |
सदा खिलाना गुल नया, नया कजिन मुसकाय ||
...ये कौन परी है?...जरा अता पता तो बताइए रविकर जी!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
ये कौन-सी रचना है ?
ReplyDeleteरचना रचना रवि-करे, रचना रची न जाय |
Deleteरचना रविकर थी पड़ी, चला यहाँ चिपकाय ||
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
दही जमाना भूलती, रंग जमाना याद |
ReplyDeleteकरे माडलिंग रात-दिन, बढ़ी मित्र तादाद ||
अजी क्या बात है .सजीव कर दियो आधुनिका का चित्र आपने .
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteये लो अब ये भी कर लिया
ReplyDeleteलाल में नीला भर लिया ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपकाना खिलाना छोड़कर,शुरू किया ये काम,
ReplyDeleteमिलना जुलना कुछ नही,कमा रहे हो नाम,,,,,,
करे बहाना आलसी, अश्रु बहाना काम |
ReplyDeleteहोय दुर्दशा देह की, जब से लगी हराम ।।
सुंदर दोहे ...!!
बहुत ही सुन्दर दोहे ...अत्यंत प्रभावी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर !!!