किसी ने बताया कि
उसे सीढी के रूप में इस्तेमाल करने का फंडा
बड़ा पुराना है ।
बड़ा पुराना है ।
प्रत्युत्तर कुंडली में
अलंकार भी देखें-
मतलब पेंट कर दिया है-
कभी झाड़ पर न चढूं, चना होय या ताड़ |
बड़ा कबाड़ी हूँ सखे, पूरा जमा कबाड़ |
पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी |
पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी |
जरा जंग की मार, तनिक उसमे अधमायी |
झाड़-पोंछ कर पेंट, रखा है उसे टांड़ पर |
झाड़-पोंछ कर पेंट, रखा है उसे टांड़ पर |
खा बीबी की झाड़, चढूं न चना झाड़ पर ||
दोहे
पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । 1।
शत्रु जान से मार दे, आन रखूं महफूज ।
लांछन लगे चरित्र पर, तो उपाय क्या दूज ??
रविकर पूंजी नम्रता, चारित्रिक उत्कर्ष ।
दुर्जन होवे दिग्भ्रमित, समझ दीनता *अर्श ।।
*अश्लील
गलती पर मांगे क्षमा, वह अच्छा इन्सान ।
बिन गलती जो माँगता, पाये वह अपमान ।।
चबवाये नाकों चने, लहराए हथियार ।
चनाखार था पास में, देता रविकर डार ।।
....वाह बड़े अच्छे दोहे .....
ReplyDeleteरविकर पूंजी नम्रता, चारित्रिक उत्कर्ष ।
ReplyDeleteदुर्जन होवे दिग्भ्रमित, समझ दीनता *अर्श ।।
बहुत खूब कहा है आपने -
वीरुभाई ,
Hotel Travelodge ,Traverse City ,Room no .134,Michigun .USA
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर। उत्तम।
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