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Tuesday, 3 July 2012

पुरानी रचना 25 मई 2011

वो पडोसी आज तक पोछा लगाता,
stock photo : Man milking a buffalo by hand into a bucket at the Sonepur livestock fair, Bihar, India
दूध  ग्वाले से दुहा कर रोज लाता 
हर सुबह सब्जी ख़रीदे खुद पकाता,
धुल के सारे वस्त्र नियमित फिर नहाता
DSC07648
गल्तियों पर कसम खाता गिड़गिडाता--
किन्तु बीबी जब डपटती डूब मरिये 
हौज में पानी भला किस हेतु भरिये ?


आठ घंटे चाकरी में जा बिताया, 
चार घंटे रोज बच्चों को पढाया---
http://www.simply-kids-play.com/image-files/kids-play-01.jpg
खेल नियमित शाम को संगमें खिलाया,
बागवानी का नया जो शौक आया
http://www.popupcanopies.org/wp-content/uploads/2010/11/gardening.jpg
एक घंटे पौध में, पानी पटाया, 
तुम पटी फिर भी नहीं, तो - की करिए ?
कैंचियों का है ज़माना खुब कतरिये |

http://www.haddonfield.k12.nj.us/hmhs/academics/english/parvat1.jpg
प्रभुने किये उपकार हमपर यूँ  बड़े,
हैं आज बच्चे पैर पर अपने खड़े --
लक्ष्य भेदा, बन चुके वे लाडले, 
मौजूदगी मेरी इधर,  घर में खले
पककर कढ़ाई से गिरे, चूल्हे पड़े, 
भून करके कह रही कि जल मरिए |
ढल चुकी है शाम, 'रविकर' चल-चलिए |

4 comments:

  1. ढल चुकी है शाम रविकर चल ,चलिए ...बढ़िया प्रस्तुति है .

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  2. खूब उकेरा बन्धु जीवन की गाथा को सच में यही सब होता है अब पूरा समय यहीं देंगे तो घर वाले उलटे पाँव खदेरेंगे जरुर ....उनको भी समय दीजिये सब अपने पाँव खड़े हुए सुन ख़ुशी हुयी...सुन्दर सन्देश देती रचना ..ह हा ..भ्रमर ५

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  3. आभार भाई जी -
    सुधर रहा हूँ-
    जाहि बिधि रखे राम -----

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  4. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति

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