आखिर क्यों :आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द प्राप्त होना
Virendra Kumar Sharma
क्रीड़ा-हित आतुर दिखे, दिखे परस्पर नेह | पहल पुरुष के हाथ में, सम्पूरक दो देह | सम्पूरक दो देह, मगर संदेह हमेशा | होय तृप्त इत देह, व्यग्र उत रेशा रेशा | भाग चला रणछोड़, बड़ी देकर के पीड़ा | बनता कच्छप-यौन, करे न छप छप क्रीड़ा || माहिरों की राय : आसान नहीं रहता है औरतों का कामानन्द को प्राप्त होना आखिर क्यों ?
Virendra Kumar Sharma
गोरी *गोही आदतन, द्रोही हरदम मर्द |
गर्मी पल में सिर चढ़े, पल दो पल में सर्द | पल दो पल में सर्द, दर्द देकर था जाता | करता था बेपर्द, रहा हर वक्त सताता | बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी | होय श्रमिक या भूप, नचा सकती है गोरी ||
*छुपा कर रखने में सक्षम
|
Followers
Saturday, 30 November 2013
बदली सबला रूप, खींच कर रखती डोरी-
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुंदर टिप्पणियाँ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन छंद .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
ReplyDelete