(1)
होती जिनसे चूक है, कहते उन्हें उलूक |
होती जिनसे चूक है, कहते उन्हें उलूक |
असत्यमेव लभते सदा, यदा कदा हो चूक |
यदा कदा हो चूक, मूक रह कर के लूटो |
कह रविकर दो टूक, लूट के झटपट फूटो |
बोलो सतत असत्य, डूब के खोजो मोती |
व्यवहारिक यह कथ्य, सदा जय इससे होती ||
(2)
(2)
कहे कुटुंबी कहकहे, अपना ही जनतंत्र |
पितामहे मातामहे, लूटामहे सुमंत्र |
लूटामहे सुमंत्र, राज का तंत्र अनोखा |
खुद को छप्पनभोग, आम पब्लिक को चोखा |
चुन लेते सर नेम, लिस्ट यह काफी लम्बी |
यही लूट का गेम, आज फिर कहे कुटुम्बी ||
पितामहे मातामहे, लूटामहे सुमंत्र |
लूटामहे सुमंत्र, राज का तंत्र अनोखा |
खुद को छप्पनभोग, आम पब्लिक को चोखा |
चुन लेते सर नेम, लिस्ट यह काफी लम्बी |
यही लूट का गेम, आज फिर कहे कुटुम्बी ||
बहुत उम्दा !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रविकर जी,
ReplyDeleteआज कम से कम भारतीय जनतंत्र का आशय तो यही रह गया है.जहाँ राजनीती खानदानी पेशा बन गया है,
लूट लूट के लूट लो जनतंत्र की ये खीर
,कब कोई आ जायेगा लेकर अपनी भीड़.
भाई बेटी मात पिता सबको बना दे लीडर
लिखा,,पढ़ा सभी को मात्र लूट का एक मंत्र.