रविकर-पुंज
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Friday, 15 November 2013
अंग अंग दे बेंच, देख रविकर का बूता-
खलियाना खलता नहीं, चमड़ी धरो उतार |
मँहगाई की मार से, बेहतर तेरी मार |
बेहतर तेरी मार, बना के पहनो जूता |
अंग अंग दे बेंच, देख रविकर का बूता |
जीना हुआ मुहाल, भला है बूचड़-खाना -
झटका अते हलाल, शुरू कर तू खलियाना ||
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