करमहीन नर हैं सुखी, कर्मनिष्ठ दुःख पाय |
बैठ हाथ पर हाथ धर, खुद लेता खुजलाय |
खुद लेता खुजलाय, स्वयं पर रखें नियंत्रण |
दे कोई उकसाय, चले ठुकराय निमंत्रण |
टाले सकल बवाल, रहे मुर्गी से बचकर |
खाये घर की दाल, मजे ले अक्सर रविकर ||
नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा
केले सा जीवन जियो, मत बन मियां बबूल |
सामाजिक प्रतिबंध कुल, दिल से करो क़ुबूल |
दिल से करो क़ुबूल, अन्यथा खाओ सोटा |
नहीं छानना ख़ाक, बाँध कर रखो लंगोटा |
दफ्तर कॉलेज हाट, चौक घर मेले ठेले |
रहो सदा चैतन्य, घूम मत कहीं अकेले |
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ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 29-11-2013 चर्चा मंच-स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1445) पर ।।
ReplyDeleteलेते रहिये मजे :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (29-11-2013) को स्वयं को ही उपहार बना लें (चर्चा -1446) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'