कुंडलियां
(१)
मानव समता पर लगे, प्रश्न चिन्ह सौ नित्य ।
रंग धर्म क्षेत्रीयता, पद मद के दुष्कृत्य ।
पद मद के दुष्कृत्य , श्रमिक रानी में अंतर ।
प्राण तत्व जब एक, दिखें क्यूँ भेद भयंकर ।
रविकर चींटी देख, कभी ना बनती दानव ।
रखे परस्पर ख्याल, सीख ले इनसे मानव ॥
(२)
बड़ा स्वार्थी है मनुज, शक्कर खोपर चूर ।
चींटी खातिर डालता, शनि देते जब घूर ।
शनि देते जब घूर, नहीं तो लक्ष्मण रेखा ।
मानव कितना क्रूर, कहीं ना रविकर देखा ।
कर्म-योगिनी श्रेष्ठ, नीतिगत बंधन तगड़ा ।
रखें चीटियां धैर्य, व्यर्थ ना जाँय हड़बड़ा ॥
ReplyDeleteवाह क्या बात है शब्द सौंदर्य देखते ही बनता है रचना का शब्द चयन भी अर्थपूर्ण सौंदर्य लिए है।
उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मुकेश और मेरा संगीत
मानव कितना क्रूर, कहीं ना रविकर देखा ।
ReplyDeleteवाह भई वाह !!
बधाई आपको !!