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Saturday, 2 November 2013

धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -


बापू होते खेत इत, भारत चाचा खेत |
सेत-मेत में पा गए, वंशावली समेत |

वंशावली समेत, समेंटे सत्ता सारी |
  अहंकार कुल छाय, पाय के कुल-मुख्तारी |

"ताल-कटोरा" आय, लगाते घोंघे गोते |
धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -


पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-रविकर



पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||



वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी 
पावली=चवन्नी 
गावदी = मूर्ख / अबोध

4 comments:

  1. सुंदर रचना.

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. अवध उस स्थान कहते हैं जहां किसी का वध न हो .लेकिन ये अवध नरेश के समय की बात है अब तो वहाँ सेकुलर प्रेत रहते हैं सरकार में .सुन्दर प्रस्तुति .मान्यवर अपनी मेल चेक करें .

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  3. बहुत ही सुन्दर कुण्डलियाँ रविकर जी ... सब के प्रभू एक ...

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  4. बहुत सुंदर कुण्डलियां !

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