बापू होते खेत इत, भारत चाचा खेत |
सेत-मेत में पा गए, वंशावली समेत |
वंशावली समेत, समेंटे सत्ता सारी |
अहंकार कुल छाय, पाय के कुल-मुख्तारी |
"ताल-कटोरा" आय, लगाते घोंघे गोते |
धोते "रविकर" पाप, आज गर बापू होते -
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक-रविकर
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
सुंदर रचना.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
अवध उस स्थान कहते हैं जहां किसी का वध न हो .लेकिन ये अवध नरेश के समय की बात है अब तो वहाँ सेकुलर प्रेत रहते हैं सरकार में .सुन्दर प्रस्तुति .मान्यवर अपनी मेल चेक करें .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कुण्डलियाँ रविकर जी ... सब के प्रभू एक ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर कुण्डलियां !
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