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Friday, 8 November 2013

पुन: मुज्जफ्फर नगर, करूँ क्यूँकर अनुशंसा-

(१)
बारी बारी से करें, दरबारी स्तुतिगान |
गरिमा से गणतंत्र की, खेल रहे नादान |

खेल रहे नादान, अधिकतर गलतबयानी |
खानदान वरदान, सयानी रविकर रानी  |

कई पालतू सिंह, पाय के मनसबदारी ।  
जी हुजूर आदाब, बजाते कुल- दरबारी । 

(२)
मंशा पर करते खड़े, क्यूँ आयोग सवाल । 
भल-मन-साहत देखिये, देख लीजिये चाल । 

देख लीजिये चाल, चार पन्ने का उत्तर । 
होता मुन्ना पास, मिले शाबाशी पुत्तर । 

पुन: मुज्जफ्फर नगर, करूँ क्यूँकर अनुशंसा ।
उधर इरादा पाक, इधर इनकी जो मंशा ॥ 

7 comments:

  1. बहुत सुंदर आ. रविकर जी.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-11-2013) "गंगे" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1424” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  3. (१)
    बारी बारी से करें, दरबारी स्तुतिगान |
    गरिमा से गणतंत्र की, खेल रहे नादान |

    खेल रहे नादान, अधिकतर गलतबयानी |
    खानदान वरदान, सयानी रविकर रानी |

    कई पालतू सिंह, पाय के मनसबदारी ।
    जी हुजूर आदाब, बजाते कुल- दरबारी ।

    बहुत ज़ोरदार कोड़ा लगा दिया नकली सिंह को ,शहज़ादा सलीम को।

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  4. बहुत ज़ोरदार कोड़ा लगा दिया नकली सिंह को ,शहज़ादा सलीम को।

    कुलकी रीत सदा चली आई ,

    प्राण जाए पर सीट (कुर्सी )न जाई।

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  5. बहुत सुन्दर...

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