(१)
बारी बारी से करें, दरबारी स्तुतिगान |
गरिमा से गणतंत्र की, खेल रहे नादान |
खेल रहे नादान, अधिकतर गलतबयानी |
खानदान वरदान, सयानी रविकर रानी |
कई पालतू सिंह, पाय के मनसबदारी ।
जी हुजूर आदाब, बजाते कुल- दरबारी ।
(२)
मंशा पर करते खड़े, क्यूँ आयोग सवाल ।
भल-मन-साहत देखिये, देख लीजिये चाल ।
देख लीजिये चाल, चार पन्ने का उत्तर ।
होता मुन्ना पास, मिले शाबाशी पुत्तर ।
पुन: मुज्जफ्फर नगर, करूँ क्यूँकर अनुशंसा ।
उधर इरादा पाक, इधर इनकी जो मंशा ॥
बहुत सुंदर आ. रविकर जी.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (09-11-2013) "गंगे" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1424” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDelete:)
ReplyDelete(१)
ReplyDeleteबारी बारी से करें, दरबारी स्तुतिगान |
गरिमा से गणतंत्र की, खेल रहे नादान |
खेल रहे नादान, अधिकतर गलतबयानी |
खानदान वरदान, सयानी रविकर रानी |
कई पालतू सिंह, पाय के मनसबदारी ।
जी हुजूर आदाब, बजाते कुल- दरबारी ।
बहुत ज़ोरदार कोड़ा लगा दिया नकली सिंह को ,शहज़ादा सलीम को।
बहुत ज़ोरदार कोड़ा लगा दिया नकली सिंह को ,शहज़ादा सलीम को।
ReplyDeleteकुलकी रीत सदा चली आई ,
प्राण जाए पर सीट (कुर्सी )न जाई।
बहुत सुन्दर...
ReplyDelete