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Monday, 28 January 2013

चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग

दामि‍नी.....नहीं मि‍लेगा तुम्‍हें न्‍याय

रश्मि शर्मा 
बालिग़ जब तक हो नहीं, चन्दा-तारे तोड़ ।
मनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ।

बाहें रोज मरोड़, मार काजी को जूता ।
अब बाहर भी मूत, मोहल्ले-घर में मूता ।

चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग ।
फिर चाहे तो मार, अभी तो तू नाबालिग ।।



अंधी देवी न्याय की, चालें डंडी-मार |
पलड़े में सौ छेद हैं, डोरी से व्यभिचार |
 
डोरी से व्यभिचार, तराजू बबली-बंटी  |
देता जुल्म नकार, बजे खतरे की घंटी |
 
अमरीका इंग्लैण्ड, जुर्म का करें आकलन |
कड़ी सजा दें देश, जेल हो उसे आमरण ||

7 comments:

  1. क्या करें अँधा-क़ानून है, अंधे संरक्षक !

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  2. ओ !भाई बचके रहना मैं ना -बालिग़ हूँ .बहना आगे पीछे देखके चलना मैं ना -बालिग़ हूँ .क़ानून मेरे पीछे है मेरी शक्ल देख लागू होता है .मैं हूँ 17 साल पांच महीना .सात महीने बाद भारत को निहाल कर देता .चार चाँद लगा देता इंडिया को .

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  3. कानून तो अँधा है ही ,बनाने वाले पर संदेह हो रहा है
    New post तुम ही हो दामिनी।

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  4. SADHI HUI RACHNAAYEN...SHABDON PER GAHRI PAKAD...

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