आज यह देखिये -
पाकी सिर काटे अगर, व्यक्त सही आक्रोश ।
मरे पुलिस के पेट में, नक्सल दे बम खोंस ।
नक्सल दे बम खोंस, आधुनिक विस्फोटक से ।
करे धमाका ठोस, दुबारा पूरे हक़ से ।
अन्दर बाहर शत्रु, बताओ अब क्या बाकी ।
नक्सल पीछे कहाँ, तनिक आगे है पाकी ।।
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Tuesday, 8 January 2013
बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी
पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस ।
रविकर इन पर रीस है, उन पर दारुण रीस ।
उन पर दारुण रीस, देह क्षत-विक्षत कर दी ।
सो के सत्ताधीश, गुजारे घर में सर्दी ।
बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी ।
सीमोलंघन खेल, बाज नहिं आते पाकी ।।
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प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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अतिसुंदर रचना
ReplyDeleteअच्छी है,बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteNew post : दो शहीद
बहुत प्रभावी रचना...
ReplyDelete✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
आदरणीय रविकर जी
मन को झकझोर देने वाली आपकी इन रचनाओं के लिए क्या कहा जाए ...
सादर नमन !
अंधे-बहरे प्रशासकों तक आपके शब्द पहुंचे तो शायद उनको कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरणा मिले ...
साधुवाद !!
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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प्रभावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteमकरसंक्रांति की शुभकामनाएँ !
सादर !