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Wednesday, 30 January 2013

नाबालिग ले ढूँढ़, होय बढ़िया कद-काठी -

लाठी हत्या कर चुकी, चुकी छुरे की धार |
कट्टा-पिस्टल गन धरो, बम भी हैं बेकार |

बम भी हैं बेकार, नया एक अस्त्र जोड़िये |
सरेआम कर क़त्ल, देह निर्वस्त्र छोड़िए |  

नाबालिग ले  ढूँढ़, होय बढ़िया कद-काठी |
मरवा दे कुल साँप,  नहीं टूटेगी लाठी ||

बालिग़ जब तक हो नहीं, चन्दा-तारे तोड़ ।
मनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ।
बाहें रोज मरोड़, मार काजी को जूता ।
अब बाहर भी मूत, मोहल्ले-घर में मूता ।
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग ।
फिर चाहे तो मार, अभी तो तू नाबालिग ।।

 
अंधी देवी न्याय की, चालें डंडी-मार |
पलड़े में सौ छेद हैं, डोरी से व्यभिचार |
 
डोरी से व्यभिचार, तराजू बबली-बंटी  |
देता जुल्म नकार, बजे खतरे की घंटी |
 
अमरीका इंग्लैण्ड, जुर्म का करें आकलन |
कड़ी सजा दें देश, जेल हो उसे आमरण ||

4 comments:

  1. अंधी देवी न्याय की, चालें डंडी-मार |
    पलड़े में सौ छेद हैं, डोरी से व्यभिचार |

    सशक्त व प्रभावशाली ...
    सादर !

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  2. वाह क्या बात कही है आपने रविकर जी मजा आ गया
    आज मैने भी कुछ पक्तिया लिखी है अपने औजस्वी वाणी नामक वेव समाचार बाली साइट पर आपका साथ चाहूँगा कृपया साथ दें और मुझे प्रेरणा दें आपका ज्ञानेश कुमार

    http://debaicity.blogspot.in/

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  3. samsaamyik prasang par समसामयिक कानूनी विवशता पर बेहतरीन तंज .बचके रहना अपने घर में मैं अभी 18 का नहीं हुआ हूँ .

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  4. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .बढ़िया प्रस्तुति है भाई साहब .

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