दायें बायें जाय के, कैसे काटूं कान |
कूट कूट कर जो भरा, काया में ईमान |
काया में ईमान, बिठाया लोकपाल भी |
बहुत बजाया गाल, दिया है साथ ताल भी |
ताल-मेल का ताल, डुबकियां आप लगाएं |
*कूटकर्म से मार, मछलियां दायें-बायें ||
*छल धोखा
टोपी बिन पहचान में, नहीं आ रहे आप |
लगे अवांछित आम जन, अपना रस्ता नाप |
अपना रस्ता नाप, शाप है धरती माँ का |
बको अनाप-शनाप, भिड़ेगा तब ही टाँका |
चतुर करेगा राज, होय चाहे आरोपी |
डुबकी आप लगाय, लगा लो बस यह टोपी ||
काना राजा भी भला, हम अंधे बेचैन |
सहमत हम सब मतलबी, प्यासे कब से नैन |
प्यासे कब से नैन, सात सौ लीटर पानी |
गै पानी मा भैंस, शर्त की की नादानी |
सत्ता को अब तलक, मात्र मारा है ताना |
पाय खुला भू-फलक, नहीं अब "आप" छकाना |
लाजवाब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर . अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह क्या कहने !
ReplyDeletehr dohe lajbab ....badhai Ravi ji
ReplyDeleteअरे वाह .... क्या तीखी मिर्ची है
ReplyDeleteआनंद आ गया
बहुत सशक्त लेखन प्रासंगिक विसंगतियों पर।
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