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Sunday, 6 October 2013

हक़ अव्वल निर्दोष, उठा तू मोटा कर्जा-

-दिल्ली कल,कर्नाटक आज -

कर्जा खाए पार्टियाँ, रही चुकाय उधार |
मंत्री गृह-मंत्री कभी, कभी सकल सरकार |

कभी सकल सरकार, तुम्हे दे सकल संपदा |
तुम ही तारण-हार, हरोगे तुम ही विपदा |

खोवे रविकर होश, पाय के दोयम दर्जा |
हक़ अव्वल निर्दोष, उठा तू मोटा कर्जा |


बढे धरा की शान, बने रविकर सद्कर्मी-

सद्कर्मी रचता रहे, हितकारी साहित्य |
प्राणि-जगत को दे जगा, करे श्रेष्ठतम कृत्य |

करे श्रेष्ठतम कृत्य, धर्म जब हो बेचारा |
होय भोग का भृत्य, चरण चौथा भी वारा |

होंय सफल तब विज्ञ, सुधारें दुष्ट अधर्मी |
बढे धरा की शान, बने रविकर सद्कर्मी ||

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