गाँधी कब का भूलते, दो अक्तूबर दोस्त |
दायें बीयर बार पब, बाएं बिकता गोश्त |
दायें बीयर बार पब, बाएं बिकता गोश्त |
बाएं बिकता गोश्त, पार्क में अनाचार है |
उधम मचे बाजार, तडपती दिखे नार है |
इत मोदी का जोर, बड़ी जोरों की आँधी |
उत उठता तूफ़ान, दिखा गुस्से में गाँधी ||
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (04-10-2013) को " लोग जान जायेंगे (चर्चा -1388)
ReplyDelete" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
मस्त है ... आज के गांधी तो सो रहे हैं ...
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ReplyDeleteसशोधित रूप रचना का और प्रखर हुआ है।
जोरदार।
ReplyDeleteआज के गांधी का गुस्सा अनाचार पर नही मोदी पर है।