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Tuesday, 24 September 2013

बातें नीति विरुद्ध, बुद्ध पर लगा कहाने-

(1)
भटके राही लक्ष्य बिन, भट के झूठे युद्ध |
आशिक रूठे रूह से, देखूं ढोंग विशुद्ध |


देखूं ढोंग विशुद्ध, लगा सज्जन उकसाने |

बातें नीति विरुद्ध, बुद्ध पर लगा कहाने |



गा मनमाने गीत, दिखा के लटके-झटके |

मान बैठता जीत, जगत में क्यूँकर भटके ||


(2)


नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज । 

है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज । 


नारि सुशोभित आज,  सुरक्षा करना जाने । 

रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।


लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |

इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|

3 comments:

  1. आपकी दो पंक्तियाँ बहुत कुछ कहती हैं रविकर भाई ...

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  2. सही में बहुत कुछ ही नहीं जैसे सब कुछ कह देती हैं !

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  3. नारी ही नारी की है निर्मम महतारी।

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