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Thursday 4 July 2013

कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ-

 (1)
रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह ।
सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ।

बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से ।
कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से ।

 करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।
कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥

(2)
रुष्ट-त्रिसोता त्रास दी, खोले नेत्र त्रिनेत्र |
बदी सदी से कर गए, सोता पर्वत क्षेत्र |

सोता पर्वत क्षेत्र, बहाना कुचल डालना |
मरघट बनते घाट, शांत पर महाकाल ना |

शिव गंगा का रार, झेल के जग यह रोता |
नहीं किसी की खैर, त्रिलोचन रुष्ट त्रिसोता ||

त्रिसोता= गंगा जी

3 comments:

  1. रुष्ट त्रिसोता ने किया,महाप्रलय संहार
    बोला पंडित एक,मिला मोक्ष रुद्र के द्वार!

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  2. रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह
    सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ...

    वाह ... हमेशा की लाजवाब छंद ... आपकी शैली कमाल है ...

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