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Wednesday 25 April 2012

इंजीनियरिंग कालेज कैम्पस : बदतर हालात

आँखों देखी

इक्जाम की आदत गई, इकजाम का अब फेर है |
उस समय था काम  पढना, अब, काम ही हरबेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

तब अंक की खातिर पढ़े, हर जंग में जाकर लड़े |
अब अंक में मदहोश हैं, बस जंग-लगना  देर है ।
अंधेर है, अंधेर है ||     

थे सभी काबिल बड़े, होकर मगर काहिल पड़े |
ज्ञान का अवसान है, अपनी गली का शेर है |
अंधेर है, अंधेर है ||

न श्रेष्ठता की जानकारी, वरिष्ठ जन से मार भारी |
जिंदगी  की  समझदारी,  में  बहुत  ही  देर  है |
अंधेर है, अंधेर है ||

7 comments:

  1. सभी कोलेजों के कैम्पस में ऐसा ही अंधेर है!...खूब कही आपने!...आभार!

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  2. कल परीक्षा से डरा अब 'पर - इच्छा' का है डर
    'जान' से 'वर' हो गया अब हो गया हूँ 'जानवर'.

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  3. दुर्भाग्य यह है अब ये संस्थान साईबोर्ग (मशीनीकृत मानव ,आधा से ज्यादा मशीन शेष होमोसैपियन) ही नीला रहें हैं .बी बी सी के उद्घोषकों की समस्वर आवाज़ से .

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  4. जान कर कविता तुम्हारी जान हम देने लगे,
    भाग हमरे खुल गए हम भाग कर जाएँ कहाँ!!

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  5. एक्जाम और एक जाम का अंतर आपने खूब समझाया .रही काम की बात इस दौर की हर चीज़ के केंद्र में 'काम 'है .चाहे वह नृत्य की मैथुनी मुद्राएँ हों या डिजाई नर्स साडी का कामुक भड़काऊ संस्करण .नजर का तो फेर है ही .नज़ारे भी बदल गए हैं .बालीवुड में न्यूड के लिए कई तैयार हैं .हमारा फोकस बदल रहा है .परिवर्तन की रफ्तार कप्यूटर पीढ़ियों की तरह छलांग लगाए है .

    दूसरे छोर पर आज भी कई इम्तिहानी लाल भी देखने को मिलेंगे जिस मर्जी एग्जाम में बिठला दो ९० % अंक लायेंगे .भाई साहब ये एम् एम् एस का दौर है .किस किस को रोइए ,आराम बड़ी चीज़ है मुंह ढकके सोइए .आठ घंटा सोइए .

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  6. मुझे तो न जाने कब अवसर मिलेगा, इन सब रचनाओं को आपके मुंह से तरन्नुम में सुनूं।

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