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Wednesday, 26 July 2017

रविकर की कुण्डलियाँ

प्रमाणित किया जाता कि प्रकाशन हेतु प्रस्तुत रचनाएँ मौलिक और अप्रकाशित हैं | --रविकर 
(१)
झाड़ी में हिरणी घुसी, प्रसव काल नजदीक।
इधर शिकारी ताड़ता, उधर शेर दे छींक।
उधर शेर दे छींक, गरजते बादल छाये।
जंगल जले सुदूर, देख हिरणी घबराये।
चूक जाय बंदूक, शेर को मौत पछाड़ी। 
शुरू हुई बरसात, सुने किलकारी झाड़ी।।
(२)
डॉगी क्या गायब हुआ, पागल पुलिस विभाग।

भागदौड़ करती रही, पाये नहीं सुराग। 
पाये नहीं सुराग, मातहत भी दौड़ाये।
उसी समय इक फोन, वहाँ मुखबिर का आये।
वृद्धाश्रम की ओर, पुलिस तो झटपट भागी।
वृद्धा माँ के चरण, चाटता पाया डॉगी।।
(3)
बेटी ठिठकी द्वार पर, बैठक में रुक जाय।
लगा पराई हो गयी, पिये चाय सकुचाय। 
पिये चाय सकुचाय, आज वापस जायेगी।
रविकर बैठा पूछ, दुबारा कब आयेगी।
देखी पति की ओर , दुशाला पुन: लपेटी।
लगा पराई आज, हुई है अपनी बेटी।।
दोहा
बेटी हो जाती विदा, लेकिन सतत् निहार।
नही पराई हूँ कहे, बारम्बार पुकार।।



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